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पत्र : 'इंडियन ओपिनियन' को


प्राप्त होती है--यह उक्ति तो ठीक है किन्तु यज्ञका मतलब निरी लकड़ियाँ जलाना और उनमें घी आदिका हवन करना ही नहीं है। भले ही उससे वायु शुद्ध होती हो, पर उससे जीवनको परिपुर्णता नहीं मिल सकती। जब हम अपनी हड़ियोंको काष्टकी तरह जलायें, अपने रक्त रूपी घृतका होम करें और अपने ही मांसकी बलि दें तभी सच्चा यज्ञ सिद्ध हुआ माना जायेगा और तभी पृथ्वी टिकी रह सकेगी। इस प्रकारके यज्ञ-आत्मबलिदान -- के बिना पृथ्वीका निर्वहन सम्भव नहीं। आत्म बलिदानके बिना कभी कोई कौम तरक्की नहीं कर सकी है। तब हम ही क्या इसके अपवाद हैं? कदापि नहीं। यही सोचकर मैंने इतमीनान कर लिया कि हरबतसिंह-जैसे वृद्ध भारतीय, भारतके हितमें जेलोंको भर दें और उन्हीं में मर-मिट जायें तो कोई चिन्ताकी बात नहीं है। मैने हरबतसिंहसे पूछा भी था कि उन्होंने अपनी इस उत्तर अवस्थामें जेलमें आना कैसे पसन्द किया? उन्होंने जवाब दिया, "जब आप सभी, स्त्रियाँ आदि तक जेल जा रहे हैं तब मैं ही जेलसे बाहर रह कर क्या करूं? जब आप चार्ल्स टाउन गये तब मैंने अपना छोटा-सा खेत छोड़ दिया और वहाँ जानेका निर्णय कर लिया। और जब मेरे साथी जेलमें आये तो मैं भी आ पहुँचा।" मैंने पूछा, “पर भाई! जेलमें ही यदि तुम्हारी मृत्यु हो गई तो? जवाबमें इस विवेकशील भारतीयने कहा, "हो जाये तो हो जाये, मैं बूढ़ा जो हूँ; मेरे जीनेसे लाभ ही क्या है ?"

इस वृद्ध भारतीयको सख्त सजा दी गई। मेरा खयाल है कि सत्याग्रहके पहले संघर्ष के समय जब कैदियोंको सादी कैद दी गई थी तब सरकारकी ओरसे अदालतोंको आगाह किया गया था कि किसी भी सत्याग्रही भारतीयको सादी कैद न दी जाये। और इसीलिए प्रथम सादी कैदके बाद किसी भी भारतीयको सादी सजा नहीं दी गई। यह तो किस्मत अच्छी रही कि फोक्सरस्टमें जेलरका हरबतसिंहके साथ व्यवहार नरम रहा। हरबतसिंह जेलके बगीचेमें पानी देने जाते थे और उनमें कुछ ऐसा उत्साह था कि उसे देखकर जवान सत्याग्रही कैदी भी शरमिन्दा हो उठते थे।

ऐसे भारतीयके उदात्त मरणसे किस भारतीयकी आँखोंसे हर्षके आँसू नहीं टपक पड़ेंगे? मुझे आशा है कि जब हरबतसिंहकी अर्थी निकलेगी तो उसके साथ प्रत्येक भारतीय श्मशान तक चलकर जायेगा। इस प्रकार सम्मान देकर हम हुतात्माकी स्मृतिको संजोयेंगे-- इतना ही नहीं [ऐसा करके] भारतका सम्मान करेंगे और खुद भी सम्मानित होंगे।

मैं हूँ,
भारतका गिरमिटिया
मोहनदास करमचन्द गांधी

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ७-१-१९१४

१. ८ तारीखको शव-यात्रामें, सभी धर्मोंक भारतीयों के अतिरिक्त, यूरोपीय भी शामिल हुए थे।

२, देखिए दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास, अध्याय ४५ ।