पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 12.pdf/३५२

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३१४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

श्री गांधीने जवाब दिया कि हड़ताल और उसके बादकी गिरफ्तारियाँ तो सरकारके उस वचन-भंगके विरोधस्वरूप है जो उसने श्री गोखलेको तीन पौंडी करके बारेमें दिया था, न कि गिरमिटिया भारतीयोंके प्रति होनेवाले साधारण व्यवहारके विरोधमें। श्री गांधीने कहा, कि मुझे भय है कि यदि सरकारने भारतीयोंकी प्रार्थनाओंको ठुकरा दिया तो सम्भव है फिर वही तरीके अपनाने पड़ें जो पहले अपनाये गये थे।'

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, ५-१-१९१४

२४१. पत्र : 'इंडियन ओपिनियन' को

[डर्बन
जनवरी ५, १९१४ के बाद]

सम्पादक
'इंडियन ओपिनियन',

भाई हरबतसिंहके सम्बन्धमें जो इस सोमवारको संसारसे विदा हो गये हैं, मुझे थोड़ी बहुत जानकारी है। यह मानकर कि 'इंडियन ओपिनियन' के पाठकोंको उनका परिचय पाकर अच्छा लगेगा में उक्त जानकारी नीचे दे रहा हूँ।

दो माह पूर्व, जब मैं फोक्सरस्ट जेलमें था, उस समय भाई हरबतसिंहने भी जेलको पावन किया। वे उन ३७ भारतीय कैदियों में से एक थे जिन्होंने चार्ल्स टाउनमें एक मुद्दत तक [गिरफ्तार होनेकी] राह देखनेके बाद फोक्सरस्टकी सीमामें प्रवेश करके जेल जाना पसन्द किया था। मैंने जब इनमें भाई हरबतसिंहको देखा तो मेरा हृदय हर्षसे फूल उठा। मैं तब मन-ही-मन अपने [द्वारा शुरू किये गये इस] कामको लेकर सोचमें पड़ गया। पहले मेरा हृदय तो इसलिए भर आया था कि ऐसे सत्तर वर्षकी उम्रके वृद्धको भी, जिसने लगभग तीस वर्ष नेटालमें मजदूरकी स्थितिमें गुजारे हैं, भारतका, भारतके स्वाभिमानका और प्राचीन तपश्चर्याका भान है और अपनी वृद्धावस्थामें भी आरामकी जिन्दगी बसर करनेके बजाय उसने जेलके कष्टोंको सहन करना पसन्द किया। और सोचमें इसलिए पड़ गया कि "ओ मन! अगर तेरा यह काम अपने निर्दोष और अपढ़ होते हुए भी ज्ञानी बन्धुओंको गुमराह करनेवाला निकला तो तेरी कितने पापोंकी जिम्मेदारी होगी? जब तुझे तेरी यह भूल मालूम होगी तब यदि तूने पश्चात्ताप किया भी तो वह किस काम आयेगा। तुझसे प्रेरणा पाकर जो लोग मत्यको प्राप्त हो गये थे वे जीवित नहीं हो उठेगे। और जिन्होंने तेरे निर्दिष्ट मार्गपर चलकर जेलके दुःख भोगे हैं वे उन्हें भूल नहीं सकेंगे।" इन विचारोसे मनमें उदासी आ गई। किन्तु फिर विचार उठे कि "यदि तूने शुद्ध बुद्धिसे अपने बान्धवोंको जेल जानकी सलाह दी है तो तू निर्दोष समझा जायगा। यज्ञके बिना धरती नाशको

१. देखिए “पत्र : मार्शल कैम्बेलको", पृष्ठ ३०८-०९ ।

२. हरवतसिंहकी मृत्यु ५ जनवरीको हुई । देखिए अगला शीर्षक भी।