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२३८. भाषण : सी० एफ० ऐंड्रयूजके स्वागत-समारोहमें'

डर्बन
जनवरी ४, १९१४]

श्री गांधीने कहा कि अध्यक्षका भाषण यदि हिन्दी या गुजरातीमें हो तो पिछले बीस वर्षोंसे दुभाषियका काम करना मेरा कर्तव्य ही रहा है। इस मौकेपर भी मुझे वही करनेको कहा गया है। अध्यक्षने कहा है कि यह थोड़ा-सा स्वर्ण आन्दोलनके प्रति हमारे लोगोंकी हार्दिक सहानुभूतिको व्यक्त करता है। वे शायद जेल न जा सके, परन्तु वे यह जताना चाहते है कि हृदय और आत्मासे वे आन्दोलनके साथ हैं। डर्बनके हिन्दुओंने भारतसे आये अपने अतिथियोंका जोरदार स्वागत किया। जब अखबारों में उनके आनेकी सूचना दी गई तो उससे उन्हें निराशाकी घड़ी में नई आशा मिली। उन्होंने अनुभव किया कि उनके आन्दोलनपर परमेश्वरको छाया है। सभापतिने एक शिकायतका उल्लेख किया है जिसकी ओर मैं श्री एन्ड्रयूज और श्री पियर्सनका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ। शिकायत यह है कि उनके कई जाति भाइयोंको, जिन्हें अधिवासका अधिकार प्राप्त है, प्रवासी अधिकारीने प्रवेश करने देनेसे मना कर दिया। अधिकारीने उनके बयान में थोड़ी-सी कमजोरीका लाभ उठाकर उन्हें गरीबीका सामना करनेके लिए अपने दोस्तोंसे दूर वापस भारत भेज दिया।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ७-१-१९१४

२३९. पत्र : मणिलाल गांधीको

११०, फील्ड स्ट्रीट

डर्बन

जनवरी ४, १९१४
प्यारे बेटे,

तुम्हारा पत्र पाकर बड़ी प्रसन्नता हुई। पहली बात तो यह कि रिहा होनेके बाद मुझे एक मिनटकी भी फुरसत नहीं मिली और मुझे एक दिन भी पूरी नींद नहीं मिली। दूसरी बात यह कि इतने सारे लोगोंको लिखना था कि मैंने सोचा कि मैं तुम सबको नहीं लिखू; तुम लोग इसका कारण भी समझ लोगे। परन्तु तुम्हारे

१. इतवारको सुवह ऐंड्यूज और पियर्सनका भारतीय फेरीवालोंके संघकी ओरसे विक्टोरिया स्ट्रीटपर सूरत हिन्दू संघ धर्मशालामें स्वागत किया गया। गांधीजीको सत्याग्रह कोषके लिए ६० पौंडकी राशि दानमें दी गई।