१. पत्र: गृह-मन्त्रीको[१]
[फीनिक्स]
अप्रैल १,१९१३
गृह-मन्त्री
केप टाउन]
भारतीय विवाहोंकी वैधताके बारेमें जस्टिस सर्लके फैसलेसे[२] और नेटालके प्रवासी-अधिकारीके इस कथित वक्तव्यसे मेरे देशवासियोंमें बड़ा डर पैदा हो गया है कि यहाँके निवासी भारतीयोंकी सन्तान होनेका दावा करनेवाले लड़कों और लड़कियोंको तबतक न आने दिया जायेगा जबतक वे या उनके माता-पिता उनके जन्म-सम्बन्धी प्रमाणपत्र प्रस्तुत न कर दें। और स्वयं सत्याग्रही भी अनुभव करते हैं कि वे अपनी स्थितिपर पुनर्विचार करनके लिए विवश हैं।
न्यायमूर्ति सर्लके फैसलेके अनुसार, कोई भारतीय विवाह, चाहे वह दक्षिण आफ्रिकामें सम्पन्न हुआ हो या किसी दूसरी जगह, तबतक मान्य नहीं किया जा सकता जबतक वह केप प्रान्तके विवाह-कानूनके अनुसार न हुआ हो; अर्थात् ऐसा हरएक भारतीय विवाह अवैध है जो किसी विवाह-अधिकारीके सामने दर्ज न किया गया हो, या ईसाई रीतिसे सम्पन्न न हुआ हो। मेरी विनम्र सम्मतिमें यह स्थिति असहनीय है और इससे उन अधिकारोंमें बाधा पड़ती है जिनका उपभोग भारतीय अभीतक करते रहे है। और मुझे माननीय मन्त्री महोदयका ध्यान इस बातकी ओर आकर्षित करनेकी आवश्यकता नहीं कि भारतमें हिन्दू, मुस्लिम या पारसी विधियोंसे किये गये विवाहोंको भारतीय कानूनके अनुसार पूरी मान्यता प्राप्त है।
बच्चोंकी बात लें तो यह सभी जानते हैं कि भारतमें बहुत कम बच्चोंकी पैदाइश दर्ज की जाती है। पैदाइश दर्ज कराना सबके लिए अनिवार्य नहीं है। इसलिए इक्का-दुक्का मामलोंको छोड़कर जन्मका प्रमाणपत्र प्रस्तुत करना लगभग असम्भव है।
इन दोनों मामलोंका व्यावहारिक परिणाम है अधिवासी भारतीयोंकी पत्नियो और नाबालिग बच्चोंका प्रवेश बिलकुल रोक देना। इन स्थितियोंमें मैं यह निवेदन करना चाहूँगा कि अन्य कारणोंके अतिरिक्त अस्थायी समझौतेपर [३] पूरा अमल करनेकी दृष्टिसे भी, नये प्रवासी विधेयकको ऐसा बनाना जरूरी है कि पत्नियों-