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२३३. पत्र : मार्शल कैम्बेलको

११०, फील्ड स्ट्रीट
डर्बन
जनवरी १,१९१४

प्रिय श्री मार्शल कैम्बेल,

पिछले महीनेकी ३० तारीखके आपके पत्र और उसकी स्पष्टवादिताके लिए मैं आपका अत्यन्त आभारी हूँ। मैं देख रहा हूँ कि हालकी घटनाओंने मेरे मित्रोंके बीच एक दरार पैदा कर दी है जो समय और मेरे संगत आचरणसे ही कभी भरी जा सकेगी। मैं तो अपनी ओरसे आपको इतना आश्वासन-भर दे सकता हूँ कि मुझे अपने ऐसे किसी भी आदमीकी खबर नहीं है जिसे यह इजाजत दी गई हो कि वह लोगोंको हिंसा करनेकी सलाह या उत्तेजना दे। सत्याग्रहका मर्म यही है कि अत्यधिक उत्तेजनापूर्ण परिस्थितियों में भी हिंसात्मक तरीकोंको न अपनाया जाये। मैं जानता हूँ कि मुझे यह कहनेकी अनुमति तो आप देंगे ही कि श्री गोखलेने या भारतीय समितिने आपका जो आतिथ्य ग्रहण किया था, वह श्री गोखले को या हमको अपना सार्वजनिक कर्तव्य करने से नहीं रोकता।

हमने जो हड़तालकी और जो सजाएँ काटीं उनका मंशा गिरमिटिया भारतीयोंके साथ आम तौरपर होनेवाले दुर्व्यवहारका विरोध करना नहीं, बल्कि भारतके एक महानतम प्रतिनिधिको दिये गये वचनको सरकार द्वारा भंग करने और सभीके द्वारा जिसकी निन्दा की गई है ऐसे एक क्रूरतापूर्ण करको स्थायी तौरपर थोपनेके अन्यायका विरोध करना था। आपके पत्रमें सत्याग्रहकी बेहिसाब' बुराई की गई है, लेकिन गत छ:

१. मार्शल कैम्बेलने अपने ३० दिसम्बरके पत्रमें, अन्य बातों के साथ लिखा था: "... उनको (गिरमिटिया मजदूरोंको) कुछ ऐसे व्यक्तियोंने, जो मेरे खयालसे आपके ही आदमी थे, मारपीटकी धमकी देकर काम छोड़कर बाहर आनेपर मजबूर किया था। उनमें से दो गिरफ्तार किये गये थे और उनपर जुर्माने भी किये गये थे।"

२. यह मार्शल कैम्बेल द्वारा अपने पत्र में लिखे गये इस वाक्पके संदर्भ में कहा गया है: "श्री गोखले, आपकी समिति और विक्टोरिया काउंटीके दस-पन्द्रह हजार भारतीयोंने भी, अभी बारह महीने नहीं हुए है, मेरा आतिथ्य ग्रहण किया था और मेरा नमक खाया था।"

३. कैम्बेलने लिखा था: "मेरी राषमें उससे इतना ही हुआ है कि आपकी नीतिकी भारी भूल और साफ हो गई है। यही नहीं निर्दोष और दोषी दोनों ही को समान रूपसे कष्ट सहनेपर विवश करनेवाला कोई भी आन्दोलन सफल नहीं हो सकता; प्रतिष्ठापकोंके आदर्श चाहे जितने ऊँचे रहे हों, उसमें निहित अन्याय अन्त में उसे विनाशके गर्त में पहुँचा कर ही रहेगा। आप मुझे एक मित्रके नाते ही इस स्पष्टवादिताके लिए क्षमा करेंगे कि आपके नेतृत्व में चलनेवाले कई लोग आपकी नीतिकी कमजोरीको दिन-दिन अधिक स्पष्ट रूपमें समझते जा रहे है और इसी निष्कर्षपर पहुंच रहे है कि गिरमिटिया मजदूरों जैसे मुख्यतः सन्तुष्ट लेकिन अज्ञानी लोगोंके एक बड़े समुदायको लाबी-चौड़ी बातोंसे उत्तेजित करके, उनमें व्यावहारिक किस्मकी आशाएँ जगाकर और हिंसापूर्ण धमकियों देकर उनको ऐसे कुछ राजनीतिक अधिकार हासिल करनेके लिए इस्तेमाल करना जिनके हासिल हो जानेपर भी उनको कोई लाभ नहीं होगा, एक ऐसी नीति है जो, पदि अत्यन्त ही शिष्ट भाषाका प्रयोग किया जाये तो भी, बुद्धिमानी और दूरदर्शितापूर्ण नहीं कही जा सकती।"