पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 12.pdf/३३९

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३०३
भेंट : ‘नेटाल मक्युरी' को


स्थिति गम्भीर है। मुझे दीख पड़ रहा है कि गरीब लोगोंने तैयारियां शुरू कर ही दी है, और जो लोग जाकर उनसे यह कहते हैं कि कूच पहली जनवरीको शुरू न होगी, वे उनकी बातपर विश्वास तक नहीं करते। इसलिए मैं अपने दस्तखतसे एक पर्चा' छपवाकर बँटवानेका प्रयत्न कर रहा हूँ, उस पर्चे द्वारा प्रत्येक व्यक्तिको यह सूचना प्राप्त हो जायगी कि हम फिलहाल कूच स्थगित कर रहे हैं।

यह पूछा जानेपर कि क्या आप पुनः पहली जनवरीके दिन हड़ताल शुरू करनेकी बात भारतीयोंसे कहनका इरादा रखते हैं, श्री गांधीने कहा:

हम पहली जनवरीको हड़ताल शुरू करनेकी बात उनसे नहीं कह रहे हैं। परन्तु यदि सरकारके साथ समझौता करनेके हमारे सब प्रयत्न विफल हुए तो और किसी उद्देश्यसे नहीं, बल्कि जेल-यात्राके खयालसे ही, हड़ताल करानेकी दिशामें कोई कसर न उठा रखी जायेगी। मैं आशा करता हूँ कि प्रस्तावित कूचकी नौबत न आयेगी। ऐसा सोचने के लिए मेरे पास कारण भी हैं परन्तु सरकारके भेजे हुए जो पत्र मेरे पास हैं वे इतने नाजुक हैं कि इस वक्त कुछ भी कह सकना मेरे लिए सम्भव नहीं है।

श्री गांधीने आगे चलकर कहा कि जेलसे रिहा हुए सत्याग्रहियोंने अपने कष्टोंकी जो राम-कहानी सुनाई, उससे भारतीयोंका रोष बढ़ा है। और मुझे इससे बड़ा दुःख हुआ है। गांधीजीने डर्बन जेलमें किये जानेवाले "बर्बरतापूर्ण और पाशविक व्यवहार" के सम्बन्धमें कही गई बातोंको विस्तारसे बताया और कहा कि वतनी वार्डर सत्याग्नहियोंको मारते-पीटते थे, शिकायतोंपर ध्यान नहीं दिया जाता था और बहुतेरे सत्याग्नहियोंको पेचिश हो गई थी। लोगोंने यह भी कहा कि पहननेके लिए सत्याग्रहियोंको जेलके बिना धुले कपड़े दिये जाते थे, उन्हें किताबें नहीं दी जाती थीं और जिम्मेदार अधिकारीगण उनकी खिल्ली उड़ाया करते थे। कहा जाता है कि कैदियोंपर स्नानके पश्चात् कृमिनाशक पानी उड़ेला जाता था। इस प्रकारके आरोप भी लगाये जा रहे हैं कि बहुतसे कैदियोंको अपनी धर्म-सम्बन्धी भावनाओंको रक्षाके लिए भूख-हड़ताल करनी पड़ी थी। गांधीजी इन सब आरोपोंकी जाँच-पड़तालके लिए सरकारके पास भेजनेकी दृष्टिसे, हलफनामोंके रूपमें बयान एकत्रित कर रहे हैं।

नेटाल मयुरी, ३०-१२-१९१३

१. यह उपलब्ध नहीं है।