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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


आयोगमें एक अतिरिक्त सदस्यके लिये जानेके औचित्यपूर्ण भारतीय सुझावसे सहमत हैं। यह किसीसे छिपा नहीं है कि एसेलेन वाइली एशिया-विरोधी भावनाके बडे जबरदस्त पोषक हैं। आयोगके अध्यक्षके प्रारम्भिक वक्तव्यके अनुसार, आयोग केवल दुर्व्यवहार-सम्बन्धी मामलोंकी जांच पड़ताल ही नहीं करेगा बल्कि नीति-सम्बन्धी बातों की भी: जैसे, लोगोंके कष्ट आदि। यद्यपि अध्यक्षकी ईमानदारीके बारेमें किसीको सन्देह नहीं हो सकता, तथापि वह नीति सम्बन्धी मामलोंमें अपने सहयोगियोंपर नियन्त्रण रखने में असमर्थ हैं। यह आयोग केवल न्यायिक नहीं है बल्कि राजनीतिक भी है यह उसमें की गई नियुक्तियोंसे ही स्पष्ट है। भारतीय स्थिति सदासे यही रही है, उसने जिन मामलों में भारतीय समाजका बहुत गहरा सम्बन्ध है उन मामलोंमें भारतीय समाजसे परामर्श किये जानेका -फिर वह औपचारिक रूपसे हो अथवा अनौपचारिक रूपसे-आग्रह किया है। इस आयोगके सदस्योंको नियुक्त करते समय भारतीय भावनाओंका खयाल नहीं रखा गया इतना ही नहीं, उनकी तिरस्कारपूर्वक उपेक्षा की गई है। यूरोपीय . रेलवे कर्मचारियोंके दुखड़ोंसे सम्बन्धित गत्यवरोधके दौरान, लोगोंको अपना प्रतिनिधि जनमत द्वारा चुन लेनेकी अनुमति दे दी गई थी। हम केवल अनौपचारिक विचार-विमर्शकी याचना कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त हमारे तीन नेताओंको उनकी रिहाईके पूर्व, रिहाईका कारण नहीं बताया गया था। और न आयोगके सम्बन्धमें उनकी राय ली गई थी। उनकी रिहाईके पूर्व आयोगके सदस्योंकी नियुक्तिके विरोधमें सैकड़ों सार्वजनिक सभायें की गई थीं, परन्तु उनकी ओर कतई ध्यान नहीं दिया गया। सत्याग्रहियोंपर कोड़ोंकी मार पड़ते देखकर और उनपर गोलियां चलाई जानेके कारण लोगोंका रोष बहुत बढ़ गया है। इसे वे अनुचित मानते हैं, जेलों में मर्मभेदी कष्ट दिये जानेकी सूचनायें प्राप्त हुई। इसपर सत्याग्रहियोंने अपने साथ सामान्यतया मानवतापूर्ण व्यवहार किये जानेके उद्देश्यसे भूख हड़तालका रास्ता लिया। जेलोंके दुर्व्यवहारमें वार्डरों द्वारा अपमानित किया जाना, जुलू वार्डरोंका कैदियोंपर प्रायः हाथ छोड़ बैठना और किताबों, चप्पलों, मोजों तथा कम्बलोंका न दिया जाना सम्मिलित है। इसके अतिरिक्त उन्हें जुलू लोगोंके द्वारा प्रायः बुरे ढंगसे तैयार किया गया खराब भोजनका दिया जाता है। इस सबके फलस्वरूप असन्तोष फैला और जब लोगोंने यह जाना कि आयोगका गठन जिस ढंगसे किया गया है उससे भारतीय समाजकी भावनाओंकी पूर्ण अवहेलना की जा रही है तब वह रोष और भी बढ़ा। लोगोंको ऐसा भी प्रतीत हुआ कि इस प्रकारकी नियुक्तियोंका अर्थ यह है कि सरकार न्याय करनेको तैयार नहीं है। नेताओंकी रिहाईका अर्थ यह नहीं लगाया गया कि सरकारने कोई मेहरबानी की है, बल्कि यह लगाया गया कि समाजको चुनौती दी गई है। इसलिए आयोगके सदस्योंकी संख्या बढ़ानकी अर्जी