पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 12.pdf/३३३

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

२२५. तार : गृह-मन्त्रीको

[डर्बन]
दिसम्बर २९, १९१३


तारके' लिए गृह मन्त्री महोदयको धन्यवाद। सविनय निवेदन है कि [आयोगमें] एक सदस्य खेतोंके मालिकों तथा अन्य लोगों द्वारा भेजा जाय और एक भारतीय समाज द्वारा। इससे सन्देह दूर हो जायेगा और जिन बातोंसे भारतीय समाजका बहुत गहरा सम्बन्ध है, उन बातोंके बारेमें भारतीयोंकी भावनाओंकी उपेक्षा करनेका सरकारका इरादा नहीं है, ऐसा मान लिया जायगा। हम इस आशयका वक्तव्य सार्वजनिक रूपसे प्रकाशित करवा देंगे कि हम सरकारके इस आश्वासनको स्वीकार करते है कि . उसका इरादा आयोगको एकपक्षी स्वरूप देनेका नहीं था और हमारी हार्दिक प्रार्थनापर उसने आयोगमें अतिरिक्त सदस्यों-की नियुक्ति की है-एक सदस्य हमारे हितोंका प्रतिनिधित्व करेगा। खेतोंके मालिकों और दूसरोंको भी वही [एक-एक सदस्य भेजनेका] अधिकार दिया गया है। निवेदन है कि मैं अपने देशवासियोंको यह परामर्श सहर्ष दूंगा कि यदि सरकार मेरा विनम्र सुझाव मान ले तो वे एक सदस्यी आयोगकी, जिसमें सर विलियम सॉलोमन सरकारके एकमात्र सदस्य होंगे, स्वीकार कर गत २४ वीं तारीखके उसके उत्तरकी ध्वनिसे मैं समझता हूँ कि जो वास्तविक सत्याग्रही इस वक्त कारावासमें सजा काट रहे हैं-वे तथाकथित सत्याग्रही नहीं जिनपर हिंसाका अभियोग लगाया गया हो उनकी रिहाईके सम्बन्धमें कोई कठिनाई न होगी। उसी उत्तरकी ध्वनिसे यह भी झलकता है कि आयोगका अधिकार-क्षेत्र विस्तृत कर दिया जायेगा; फलतः आयोग सब प्रकारकी शिकायतोंकी जाँच कर सकेगा और आयोगकी बैठकके पहले दिन सर विलियम सालोमनने जो वक्तव्य दिया था, उससे सामंजस्य स्थापित हो जायगा। इस मांगके स्वीकृत होते ही हम तबतक के लिए सत्याग्रह स्थगित कर देनेका वचन दे देंगे जबतक आयोग अपना निर्णय नहीं दे देता। यदि सरकार मेरे प्रस्तावपर जरा भी अनुकूल दृष्टि डालनेकी कृपा करती है तो मैं अब भी आदरपूर्वक कहना चाहता हूँ कि मुझे भेटका अवसर दिया जाये। यह भेंट मोटी-मोटी बातों- समझौता कराने में सहायक होगी। हम लोगोंके - वार्तालापका विवरण आशुलिपि द्वारा तैयार करा लिया जा सकता है, ताकि बादमें किसी किस्मका न रह सके। यदि सरकार नय वर्षके आरम्भके एक-दो दिन पूर्व ही मुझे यह घोषित करनेका अधिकार दे दे कि मेरी प्रार्थना उसने स्वीकार कर ली है तो तनाव कम हो जायेगा और मेरे देशवासियोंके दिलोंमें नूतन

१. देखिए पा० टि०१, पृष्ठ २८९ ।