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२२१. भेंट : रायटरको'

[डर्बन
दिसम्बर २७, १९१३ से पूर्व]

सरकार द्वारा भेजे गये उत्तरके सम्बन्धमें जब रायटरके संवाददाताने गांधीजीसे मुलाकात की, तब उन्होंने कहा कि सरकारने जो उत्तर भेजा है उसमें नरमीकी झलक है और में उसका लाभ उठानेकी कोशिश कर रहा हूँ। उन्होंने कहा, यह कहना तो कठिन है कि क्या होगा किन्तु मैं सरकारके साथ निजी तौरपर पत्र-व्यवहार कर रहा हूँ; और मेरा खयाल है कि इस गतिरोधसे निकलनेकी सम्भावना है। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार अपनी शानको जरा भी कम किये बगैर भारतीय समाजके इस उत्कट निवेदनको मान सकती है कि उसके हितोंको प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। सरकारको इस घोषणासे कि वह किसी भी हालतमें यह नहीं चाहती कि आयोगका स्वरूप एकपक्षीय हो, कुछ आशाका संचार होता है।

श्री गांधीने कहा कि इस विराट संघर्ष में जो कष्ट यूरोपीयों तथा मेरे देशवासियों, दोनोंको सहने पड़ेंगे उनके सम्बन्ध में दक्षिण आफ्रिकाके यूरोपीयोंको विश्वास दिलाता हूँ कि मेरे दिलमें जितनी चिन्ता भारतीयोंके कष्टोंके बारेमें हो रही है, उतनी ही यूरोपीयोंके लिए भी। मैं अपने उत्तरदायित्वको पूर्ण रूपसे समझता हूँ; इसलिए में सत्याग्रहको फिरसे आरम्भ न करना पड़े, इसका भरसक प्रयत्न करूँगा।

श्री गांधीने कहा, मैं संघ-सरकार तथा सम्राट्की सरकार, दोनोंके प्रति समान रूपसे उतना ही वफादार होनेका दावा करता हूँ जितना कोई भी राजभक्त कर सकता है; और चूंकि मेरी निष्ठा व्यक्तियोंके प्रति न होकर संविधानके प्रति है, अतएव उसपर सरकारको कार्रवाइयोंसे, मेरे लेखे वे चाहे जितनी निष्ठुर क्यों न हों, कोई असर नहीं पड़ता।

उन्होंने कहा कि मैं दक्षिण आफ्रिकाके नागरिकोंसे अपनी इस घोषणापर विश्वास करनेकी प्रार्थना करता हूँ कि में जहांतक बनेगा सत्याग्रह न छिड़ने देकर लोगोंको उसके कष्टोंसे बचानेकी पूरी कोशिश करूँगा; अलबत्ता संघर्ष टालनेके लिए मैं अन्तरात्माके विरुद्ध नहीं जाऊँगा। जब मैं जेलसे रिहा हुआ, तब मुझे यह जानकर बहुत दुःख हुआ कि तटवर्ती क्षेत्रके बागान-मालिकोंको, जिनमेंसे कुछके प्रति मेरे मनमें बहुत आदर है, क्षति उठानी पड़ी है। मैं यही आशा करता हूँ कि सरकार मेरे भेजे हुए निजी पत्रको कद्र

१. यह ३१-१२-१९१३ के इंडियन ओपिनियन में प्रकाशित हुआ था ।

२. देखिए परिशिष्ट १५ (१) ।