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पत्र : मार्शल कैम्बेलको


था कि तीन-पौंडी कर विषयक कानूनको रद कराने में आपके प्रयत्नोंके लिए हम लोग आपके इतने ऋणी हैं कि हड़तालके लिए आपके मजदूरोंसे सबसे अन्तमें ही कहा जायेगा। परन्तु मैं बिल्कुल निश्चित रूपसे कह सकता हूँ कि मेरी गिरफ्तारीके बाद मेरे कार्यकर्ताओंके लिए हड़तालियोंको नियन्त्रणमें रखना असम्भव हो गया। और आन्दोलन न केवल अनियन्त्रित हो गया बल्कि उसने अत्यन्त बृहत् रूप धारण कर लिया। मैं चाहता हूँ कि आप हम लोगोंकी भावनाओंको समझें। यदि मैं मुक्त होता और हड़ताल करानमें हाथ बंटाता तो निश्चय ही मैं भी आपके आदमियोंको हड़तालमें शामिल करानेका प्रयत्न करता। परन्तु जैसा कि मैं ऊपर निवेदन कर चुका हूँ आपके मजदूरोंका नम्बर सबके बाद आता।

जैसा कि आप जानते हैं, स्वाभिमान और प्रतिष्ठाकी खातिर और मेरे मूक और असहाय देशवासियों-गिरमिटिया भारतीयों के कष्टोंको दूर करानेके उद्देश्यसे चलाये गये इस संघर्ष में हम लोगोंके लिए यह सम्भव न था कि हम अपने कष्ट-सहनके बारेमें कुछ सोचते या उसकी कोई सीमा निर्धारित करते। इस संघर्ष में कष्ट झेलने और अपना सर्वस्व गँवा देनेके लिए खुद अपने ही स्त्री-बच्चोंको आमन्त्रित करने में हमन आगा-पीछा नहीं किया है। इसलिए न्यायतः हमसे इस बातकी आशा कदापि नहीं की जा सकती थी कि हम व्यक्तिगत रूपसे अलग-अलग मित्रों और शभचिन्तकोंके हितोंका खयाल रखेंगे। इस प्रकारके हमारे सभी संघर्षोंमें दोषी और निर्दोष, दोनों प्रकारके लोगोंको कष्ट उठाना पड़ता है। इसीलिए मैं आशा करता हूँ कि जो आप हमारे प्रति सदा रखते आये हैं उस बहुमूल्य सहयोग-भावना और सहानुभूतिसे मैं और मेरे देशवासी वंचित नहीं होंगे। मैं निवेदन करना चाहता हूँ कि यद्यपि जनरल स्मट्सने हम लोगोंकी प्रार्थना नामंजूर कर दी है तथापि इस समय उनके साथ नाजुक बातचीत हो रही है। यदि आपको अवकाश हो और आप उस बातचीतमें दिलचस्पी ले सकें तो मुझे मिलनेका समय और स्थान सूचित कर दें ताकि मैं आपसे मिल कर स्थितिपर विचार-विमर्श कर सकूँ।'

जो भावनाएँ मैंने इस पत्रमें व्यक्त की हैं, श्री कैलेनबैंक तथा श्री पोलक भी उनसे सहमत हैं। उन दोनों सज्जनोंके मनमें श्री गोखलेके सम्मानमें दिये गये आपके भोजकी सुखद स्मृति बनी हुई है।

आपका,
मो० क० गांधी

माननीय मार्शल कैम्बेल

माउंट एज्कम्ब
[अंग्रेजीसे]

नेटाल मयुरी, ५-१-१९१४

१. मार्शल कैम्बेलके प्रत्युत्तरके लिए देखिए "पत्र : मार्शल कैम्बेलको", की पाद टिप्पणियों, पृष्ठ ३०८।