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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आप कहते है कि अपने वर्तमान रवैये के कारण भारतीय समाज अपने दक्षिण आफ्रिकी मित्रोंकी सहानुभूति गँवा रहा है। यह चेतावनी समाजको कई अवसरोंपर दी जा चुकी है। और फिर भी उसके उद्देश्यकी सच्चाईके कारण हमें हर बार न केवल उस सहानुभूतिको बनाये रखने में, बल्कि बढ़ाने में भी सफलता मिली है। हो सकता है कि इस बार उसे बनाये रख सकनेका हमारा भरोसा ठीक न हो। यदि ऐसा हो तो मुझे बहुत ही दुख होगा। मैं उक्त मित्रोंकी सहानुभूतिको मूल्यवान समझता हूँ; परन्तु समाजके उद्देश्यको उससे कहीं अधिक मूल्यवान मानता हूँ। उस उद्देश्यकी पूर्ति करने में यदि हमें उनकी सहानुभूतिसे हाथ धोना पड़े, तो हमें फिलहाल सन्तोष करना चाहिए और अन्तमें सत्यकी विजयमें विश्वास रखना चाहिए, जो हमारे पक्षम है।

आपका,
मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]
नेटाल मर्युरी, २४-१२-१९१३

२१२. तार: गो० कृ० गोखलेको

डर्बन
दिसम्बर २४, १९१३

गोखले

सविडिया

पूना सिटी

आपकी भावनाको समझता हूँ। अगर उससे कुछ मदद मिले तो अपना जीवन अर्पित कर दूंगा। यह संघर्ष वाइसराय, साम्राज्यीय मन्त्रियों [अथवा] अन्य लौकिक सत्तासे स्वतन्त्र । रविवारको भगवानको साक्षी रखकर ली गई प्रतिज्ञा अपरिवर्तनीय। बहुत ही प्रतिकूल परिस्थितियों में लोगोंकी हिम्मत बनी रही तो इससे न्यायप्राप्तिमें, जो देर-सबेर मिलकर ही रहेगा, मदद मिलेगी। मेरा दृढ़ विश्वास है कि यदि हममें से कोई, विशेषकर मैं लोगोंसे बिना परिवर्धनके कमीशनको स्वीकार करनेके लिए कहूँ तो उचित रूपसे ही, खून हो जायगा। शपथ ग्रहण करने से पूर्व यह प्रश्न पूछे जानेपर कि यदि आपने अथवा वाइसरायने संघर्ष त्यागनेका अनुरोध किया तो क्या मैं कदम पीछे हटा लूंगा, मैंने कहा एक शपथ ग्रहण लेनेपर कोई व्यक्ति मुझे अपना निश्चय बदलनेपर राजी नहीं कर सकता। महसूस करता हूँ कि यहाँ हमारी स्थिति अच्छी हो रही है। लेकिन वाइसरायकी अस्वीकृतिके बाद चाहे जनतापर हमारा प्रभाव बना रहे अथवा लुप्त हो जाये,
१. संकेत स्पष्टत: गोखलेकी इस चिन्ताकी ओर है कि कमीशनका बहिष्कार करनेसे वाइसराय और इंग्लैंडके बहुतसे मित्र नाखुश हो सकते हैं। देखिए " तार : गो० कृ० गोखलेको", पृष्ठ २७७, पाद टिप्पणी १ ।