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२०३. भाषण : श्रीमती गांधीको रिहाईपर

मैरित्सबर्ग
[दिसम्बर २२, १९१३]

यह समय हमारे लिए भारी शोक करनेका है। हम इस समय समारोहों और उत्सवों में भाग नहीं ले सकते। फिर भी मेरी पत्नी और अन्य स्त्रियोंका जो स्वागत किया गया है उसके लिए मैं उनकी ओरसे आभार प्रदर्शन करता हूँ। जब मेरे भाई गोली-बारके शिकार हुए है, तब इस स्वागतमें इतना भाग लेते हुए भी मेरे मनमें बहुत संताप उत्पन्न होता है । मैं जेलमें था तब इन सब झगड़ोंसे मुक्त था। (इसी समय एक बालक रोने लगा। उसके रोनेको सुनकर) गांधीजीने कहा कि यह रोना हमारे शोककी तीव्रताका सूचक है। इस समय भारतीय भाई और बहन अलग-अलग तरहसे शोक मना कर असहाय विधवाओं और उनके बच्चोंके प्रति सच्ची सहानुभूति प्रकट कर सकते हैं। पुरुष तम्बाकू पीना, पान-सुपारी खाना या ऐसे ही अन्य व्यसनोंका त्याग कर सकते हैं और बहिनें गहने और कीमती कपड़े पहनना छोड़ सकती हैं।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २४-१२-१९१३

२०४. भाषण : मैरित्सबर्गको सार्वजनिक सभामें

मैरित्सबर्ग
[दिसम्बर २२, १९१३]

डर्बनमें रविवारको सार्वजनिक सभा हुई। उसमें श्री गांधीने स्वीकृत प्रस्तावोंका स्पष्टीकरण किया और कहा कि सत्याग्रह सत्यकी निरापद खोज है। उन्होंने सब उपस्थित भारतीयोंसे प्रार्थना की कि वे सत्यकी खातिर, आवश्यकता हो तो, मरनेके लिए तैयार रहें।'

[अंग्रेजीसे]
नेटाल मयुरी, २३-१२-१९१३

१. इसके बाद पी० के० नायडूने प्रस्ताव पेश किया जिसमें रविवारको डर्बनकी सभामें स्वीकृत प्रस्तावोंकी पुष्टि की गई थी। यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया ।