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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


दौरान सत्याग्रहियोंके साथ कोई हिंसात्मक कार्रवाई की जाये तो उन्हें चाहिए कि वे उसे खुशी-खुशी झेल लें, भले ही उसके परिणाम-स्वरूप उनकी मृत्यु ही क्यों न हो जाये। उपर्युक्त विचार एक बार फिर व्यक्त कर देना हमारे लिए आवश्यक हो गया था, क्योंकि हम देखते हैं, हमारे जेल जाने के बाद यह आरोप लगाया गया है कि कुछ जमीदारियोंमें हड़तालियोंने हिंसात्मक तरीकेसे काम लिया।

इस पत्रके अन्तिम दो हस्ताक्षरकर्ता यूरोपीय होनेके नाते सरकारको यह विश्वास दिलाना चाहते हैं कि दक्षिण आफ्रिकाके अपने भारतीय सह-प्रजाजनोंके साथ अपना भाग्य जोड़ कर उन्होंने राज्यको और यूरोपीय साथियों की सेवा ही की है। एसा उन्होंने बड़ी बारीकीसे छानबीन करने के उपरान्त ही किया है और हर स्तरके भारतीयोंके साथ बहुत निकट सम्पर्क करके वे यह समझ गये हैं कि भारतीय समाज जिन कष्टोंसे राहतकी मांग कर रहा है वे बहुत ही त्रासदायी हैं और उनके निवारणके लिए उसने जरूरतसे ज्यादा समय तक धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा की है। हमारा यह दृढ़ विश्वास है कि भारतीय समाजको माँगें पूरी करने में देर करने से दक्षिण आफ्रिकाके यूरोपीयोंकी इस ख्यातिको धक्का लगनेका खतरा है कि वे एक सभ्य समाजके सदस्य और स्वायत्त शासनके योग्य पात्र हैं। इसी कारण हमने भारतीयोंके उद्देश्योंको पूरी तरह अपना लिया है, और चूंकि सरकारके लिए नया वर्ष दक्षिण आफ्रिकाके समस्त निवासियोंकी सुख-शान्तिका प्रतीक है, या होना चाहिए, हमारा अनुरोध है कि वह इस प्रार्थनाको स्वीकार करके भारतीय समाजकी शिकायत दूर करनेकी अपनी इच्छाका प्रमाण दे।

आपके,
मो० क० गांधी
एच० एस० एल० पोलक
एच० कैलेनबैक

[पुनश्चः]

हम शीघ्र उत्तरकी प्रार्थना करते हैं, क्योंकि प्रतिकूल उत्तर मिलनेकी स्थितिमें हमें नये सालके नये दिन तक अन्य प्रबन्ध कर लेना है।'

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २४-१२-१९१३

१. दिसम्बर २४ के अपने पत्रमें गृह-मन्त्रीने गांधीजीकी शौको अस्वीकार कर दिया । देखिए परिशिष्ट १५ ।