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१९८. भाषण : डर्बनमें'

डर्बन
दिसम्बर २०, १९१३

श्री गांधीने श्रोताओंको बताया कि अब एक अत्यन्त महत्वपूर्ण निर्णय लेनेका समय आ गया है। उन्होंने कहा, मेरा विचार अगले दिन होनेवाली एक विशाल सभामें आपकी सुविचारित रायके आधारपर मत लेनका है। उन्होंने यह संकेत दिया कि जिस प्रश्नपर उन्हें निर्णय करना होगा वह यह है कि क्या एक ऐसे आयोगके सामने गवाही देना सम्मानजनक है जो भारतीयोंकी इच्छा या रायका कोई खयाल किये बगैर बनाया गया है, और यह भी कि क्या उस आयोगके सदस्योंको ईमानदार और पक्षपात-रहित माना जा सकता है?

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २४-१२-१९१३

१९९. भेंट : ' नेटाल मयुरी' को

[डर्बन
दिसम्बर २०, १९१३]

'मयुरी' के एक प्रतिनिधिको भेंट देते हुए श्री गांधीने कहा कि श्री कैलेनबैक और श्री पोलकके साथ मेरे आगमनपर होनेवाली सभामें हमारे स्वागतके लिए हमने धन्यवाद दिये। उन्होंने कहा, मेरी रिहाई एक आश्चर्यकी बात हुई, और जेलके बाहर आनेपर ही मुझे ज्ञात हुआ कि मेरी रिहाई आयोगके सदस्योंको सिफारिशके कारण हुई है।

हम महसूस करते हैं कि हमारी रिहाई हमारे कन्धेपर एक बड़ी जिम्मेदारी डालती है किन्तु आयोगका संगठन जिस प्रकारका है, उसे देखकर मुझे लगता है कि सदस्योंकी नामजदगीमें भारतीय समाजसे सलाहका न लिया जाना बहुत बड़ी चालाकी है। १९०७ से लेकर अबतक सारे सत्याग्रहपीछे प्रधान भावना यही रही है कि भारतीय समाजसे सम्बन्धित मामलों में सरकारको उसकी राय व भावनाओंका ध्यान रखना चाहिए। जाहिर है कि सरकारने आयोगके मामले में यह नहीं किया। बिना हमारी सलाह लिए अपने मनके सदस्य नामजद करनेपर हमें आपत्ति है।

१. डर्बन स्टेशन पहुँचनेपर गांधीजी, पोलक और कैलेनवैकको मालाएँ पहनाई गई और उन्हें एक जुलूसमें नेटाल भारतीय कांग्रेसके दफ्तर ले जाया गया जहाँ उन्होंने उपस्थित लोगोंके सामने भाषण दिया।