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१९७. भाषण : जोहानिसबर्गमें[१]

जोहानिसबर्ग
दिसम्बर १८, १९१३

पुराने 'गेइटी थियेटर' की एक सभामें बोलते हुए श्री गांधीने कहा कि रिहा कर दिये जानेकी मुझे कोई खुशी नहीं है। उन्होंने कहा कि मुझे जेलका एकाकीपन और शान्ति अधिक प्रिय है क्योंकि वहाँ मुझे चिन्तन-मननका अवसर और समय मिल जाता है। किन्तु रिहा हो जानेपर अब मैं वही काम फिर शुरू करूँगा जो जेल जानेसे पहले तक कर रहा था। उन्होंने कहा, जहाँतक मेरा सवाल है, मैं सरकार द्वारा नियुक्त भारतीय आयोग (इंडियन कमीशन) से सन्तुष्ट नहीं हूँ। मुझे इसमें सन्देह है कि यदि मैं और अन्य लोग उसके सामने बयान दें तो उसका कोई प्रभाव होगा, या बयान देना भारतीय आबादीके हितमें होगा। तथापि यह निश्चय हुआ है कि मैं, श्री पोलक और श्री कैलेनबैक सुबह डर्बनके लिए रवाना हों। वहाँ पहुँचनेपर ही हम निश्चय करेंगे कि आयोगका जो वर्तमान स्वरूप है, उसे देखते हम उसे स्वीकार करें या नहीं। उन्होंने कहा, मैं बिलकुल सन्तुष्ट नहीं हूँ। जिसके अधिकांश सदस्य सरकारी पक्षके हों, या जिसके सारे ही सदस्य सरकारी हों, और इसीलिए जिसका फैसला दक्षिण आफ्रिकाके भारतीय समाजके हितोंके विपरीत होगा, ऐसे आयोगको स्वीकार करनकी अपेक्षा मैं फिर जेल जाना, और भारतीयोंका मामला उसके गुण-अवगुणके ऊपर छोड़ देना पसन्द करूँगा। श्री गांधीने निश्चयपूर्वक यह कहनेसे इनकार किया कि वे आयोगके सामने बयान नहीं देंगे, लेकिन उनका इरादा वैसा ही कुछ था, क्योंकि आयोगके सदस्य भारतीयोंके खिलाफ हैं। उन्होंने कहा कि इस बारका मेरा जेलका अनुभव पिछले बारके जेल-अनुभवसे भिन्न रहा। मेरे साथ बहुत सौजन्यपूर्ण व्यवहार किया गया और मैं सार्वजनिक रूपसे यह कहना चाहूँगा कि जेल अधिकारियोंने मेरे आरामका बहुत खयाल रखा।[२]

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २४-१२-१९१३
 
  1. भारतीय जाँच आयोगकी सिफारिशपर गांधीजी, पोलक और कैलेनबैकको प्रिटोरिया ले जाया गया और १८ दिसम्बरको बिना किसी शर्त रिहा कर दिया गया। उसी दिन शामको जोहानिसबर्ग पहुँचनेपर उनके सम्मानमें एक स्वागत समारोहका आयोजन किया गया। यह भाषण उसी अवसरपर दिया गया था।
  2. गांधीजीके बाद पोलक, कैलेनबैक और विलियम हॉस्केनने भी सभामें भाषण दिया और सर्वसम्मतिसे यह निश्चय हुआ कि वर्तमान आयोगके सामने बयान न दिये जायें।