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पत्र : कुमारी देवी वेस्टको

जब महिलाएँ और लड़के वापस आ जाये तो श्रीमती गांधीसे कहना कि उनके चले जानेके बादसे अब जो दिनचर्या बन गई है, वे उसमें फेरफार न करें। इससे मुझे बहुत प्रसन्नता होगी। मुझे आशा है कि रामदास और दूसरे लड़के भी उस दिनचर्याको अपना लेंगे। तुम इसका उत्तर उन लोगोंके वापस आनेपर देना जिससे तुम मुझे उनके सम्बन्धमें पूरी जानकारी दे सको। मैं इसके उत्तरके अतिरिक्त दूसरा कोई पत्र नहीं लूंगा।

मुझे आशा है कि श्रीमती गांधीका पुराना रोग फिर नहीं उभड़ा होगा और उनका स्वास्थ्य अच्छा होगा। अन्य महिलाएँ कैसी रहीं, मुझे यह भी सूचित करना। जेकी बहनको उन वचनोंपर दृढ़ रहना चाहिए जो उन्होंने मुझे दिये हैं। उनसे कहना कि ऐसा कोई दिन नहीं जाता जब मुझे उनका खयाल न आता हो। जहाँतक भोजनका सम्बन्ध है मैं उन्हें किन्हीं वचनों या व्रतोंके बन्धनमें नहीं बाँधता। जो चीज उनके शरीरके अनुकूल आये, वे उसे खा सकती है। किन्तु उन्हें महज स्वस्थ ही नहीं बल्कि खूब हट्टा-कट्टा भी होना चाहिए। यदि डॉक्टर मेहताने निश्चित रूपसे केश बढ़ानेसे मना न किया हो, तो उन्हें अपने केश भी बढ़ा लेने चाहिए।

काशी और सन्तोक इस सामूहिक कुटुम्बमें शामिल हो सकती और श्रीमती गांधी अपनी सहमति दे देतीं तो कितना अच्छा होता।

मुझे आशा है, मगनलालने मेरी खोई हुई तमिल पुस्तक ढूंढ ली होगी। यदि न ढूंढ़ी हो तो वह गोविन्दूसे पूछे और उसे लेकर सुरक्षित रख ले। मेरे अवकाशका ज्यादातर समय तमिल पढ़ने में लगता है। थोड़ा-सा वक्त प्रतिदिन आहारके पोषक तत्वों, और लोकप्रिय एवं अपेक्षाकृत हानि-रहित औषधियोंके प्रयोगोंके विषयमें एक किताब लिखने में लगाता हूँ।

राजकोटमें जमनादासपर जो कुछ खर्च हुआ हो सो, उसके राहका खर्च तथा ऊपरसे १० पौंड श्री खुशालभाई (राजकोट) को मनीआर्डरसे भेज दिया जाये। इस १० पौंडमें से वे मेरी विधवा भाभीको २० रुपया प्रतिमास देते रहें। खुशाल-भाईको यह भी लिख दिया जाये कि वे मेरी बहिनको अपना खर्च घटाकर ५ या १० रुपये प्रतिमास कर लेनेपर राजी करें। इसमें से आवश्यक हो तो ५ रुपये मेरी भाभीके निर्वाह-व्ययमें बढ़ाया जा सकता है। भेजी गई यह सारी रकम संकटकालीन खर्चेकी मदमें डाली जा सकती है।

कुमारी श्लेसिन श्री मैकिंटायरको याद दिला दें कि वे रुपयोंकी किस्त देना शुरू करें। किस्तोंमें अदायगीका वादा उन्होंने बहुत पहले किया था।

यदि जमनादास वहाँ हो तो वह भोजन और दूसरी आदतोंमें मगनलालका अनुगमन करे । तब वह ठीक रहेगा। मैं यह जानने के लिए चिन्तित हूँ कि उसका शरीर और मन कैसा रहता है।

छगनलाल जितना ले सके उतना जैतूनका तेल ले, और जितना बन सके उतना बागवानीका काम करे। वह सब मौसमोंमें खुले में सोये और प्रातःकाल उठकर तथा रातमें

१. गांधीजीने यह पुस्तक पूरी की या नहीं, और वह प्रकाशित हुई अथवा नहीं, इसका कोई पता नहीं है।