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१९५. पोलकके मुकदमेमें गवाही'

[फोक्सरस्ट,
नवम्बर १७, १९१३]

श्री गांधीने गवाहीमें कहा कि ट्रान्सवालमें कूच करनेका निर्णय करने में श्री पोलककी राय नहीं ली गई थी। श्री पोलकका इरादा १४ नवम्बरको भारतके लिए रवाना होनेका था, और मुझे पता था कि डर्बनसे उनकी रवानगीके सारे प्रबन्ध किये जा चुके हैं। यदि लिंगस्टाड पहुँचनेसे पूर्व गवाह (अर्थात् श्री गांधी) कैद न हो जाता तो श्री पोलकने निश्चय ही उस स्टेशनसे साथ छोड़ दिया होता। परिस्थितियोंको देखते हुए श्री गांधीने सोचा कि श्री पोलक जुलूसका नेतृत्व करें और उसे गन्तव्य स्थान तक पहुंचा दें ताकि लोग तितर-बितर न हो जायें। श्री गांधीको रायमें यदि श्री पोलक सहायता देने या उकसानेके दोषी थे, तो फिर तो वे सरकारी घुड़सवार भी दोषी थे जो मार्गमें कूच करनेवालोंके साथ चल रहे थे। श्री गांधीके विचारमें श्री पोलकने अपने कार्यसे राज्यको और अपनी जातिकी सेवा की थी। कूच करनेवालोंको श्री पोलकके सुपुर्द इसलिए किया गया था, क्योंकि श्री काछलिया उस समय तक घटनास्थलपर नहीं पहुंचे थे।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २६-११-१९१३

१. पोलकपर असिस्टेंट मजिस्ट्रेट जूस्टको अदालतमें प्रवासी अधिनियमके खण्ड २० के अन्तर्गत अभियोग लगाया गया था। पोलकने अपराध स्वीकार करनेसे इनकार कर दिया। गांधीजी और कैलेनबैक सहित पाँच आदमियोंकी गवाही ली गई । राफिलमैन जूबर्टने गवाहीमें कहा कि उसने बेलफोरमें पोलकको गांधीजीसे आवश्यक निर्देश लेते देखा था, और उसके खयालसे पोलक आन्दोलनके नेताओंमें से थे । कांस्टेविल कीनने बताया कि पोलकने भारतीयोंके सामने भाषण करते हुए उन्हें चार्ल्स टाउन लौट जानेकी सलाह दी थी । कैलनबैकने कहा कि पोलकका इरादा डर्बन लौट जानेका था। उनका उद्देश्य अपनी भारतको रवानगीके सिलसिले में गांधीजीसे कुछ बातें करनेका था। पोलकको अपराधी करार देते हुए मजिस्ट्रेट ने उन्हें तीन महीनेकी सादी कैदको सजा दी ।