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हड़तालियोंको सन्देश


हड़ताल करनेको सलाह दी थी। हड़ताल करना कानूनको अवज्ञा करना है और सरकारकी स्थिति यह है कि जबतक भारतीय हड़तालपर है तबतक उसके लिए कर हटानके सम्बन्धमें किसी कानूनपर विचार करना असम्भव है। प्रतिवादी अपने धमकी-भरे आचरणसे लोगोंकी तबाही और अपने कष्ट ही बढ़ा रहा है। इसलिए मैं भारतीयोंको सत्याग्रह समाप्त करने और सरकारको आवेदनपत्र देनेकी सलाह देता हूँ। मैं यह भी मानता हूँ कि भारतीय उन यूरोपीयोंकी सहानुभूति भी खो रहे हैं जो कर हटानेके सम्बन्धमें उनके साथ हैं। श्री गांधी-जैसे सज्जनके आचरणपर जानबूझकर कानूनका उल्लंघन करनेके लिए सजा सुनाना एक दुःखद कर्तव्य है, लेकिन मुझे अपने कर्त्तव्यका पालन करना है, और उनके वकील श्री गॉडफ्रेने मुझे निर्भयतापूर्वक अपने कर्त्तव्यका पालन करने को कहा है। चूंकि अभियुक्तने अभियोगोंको स्वीकार कर लिया है अतः मैं (मजिस्ट्रेट) उसे मानकर निम्नलिखित सजा देता हूँ: पहले जुर्मपर : २० पौंड या तीन महीनेको सख्त कैद; दूसरे जुर्मपर २० पौंड या तीन महीनेकी सख्त कैद जो पहली सजाके समाप्त होनेपर शुरू होगी; तीसरे जुर्मपर २० पौंड या तीन महीनेको सख्द कैद जो दूसरी सजाके समाप्त होनेपर शुरू होगी।

श्री गांधीने स्पष्ट और शान्त आवाजमें कहा :

मैं जेल जाना पसन्द करूँगा।'

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १९-११-१९१३

१९२. हड़तालियोंको सन्देश'

[डंडी
नवम्बर ११, १९१३]

तीन-पौंडी कर रद हुए बिना हड़ताल बन्द नहीं होगी। मुझे कैदकी सजा देनेके बाद, अब सरकार शालीनताके साथ कर रद किये जानेके सम्बन्धमें ऐलान कर सकती है।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १९-११-१९१३

१. इष्टमित्रोंकी एक बहुत बड़ी भीड़ बाहर गांधीजीकी प्रतीक्षा कर रही थी परन्तु पुलिस उन्हें गुप्त रूपसे निकाल ले गई और कोई भी जान नहीं पाया कि वे कैसे ले जाये गये ।

२. मुकदमेके बाद जे० डब्ल्यू० गॉडफ्रेने गांधीजीसे भेंट की। उन्होंने कहा कि “मैं प्रसन्न और आश्वस्त हूँ।" गांधीजीने यह सन्देश भी उनके ही हाथों मेजा था ।

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