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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


इसलिए यदि उसे लगे कि मामलेकी परिस्थितियों में यह सजा न्यायोचित है तो उसे कैदीको बड़ीसे-बड़ी सजा देनमें संकोच नहीं करना चाहिए। श्री गांधीने अदालतको अनुमति ली और निम्नलिखित बयान दिया:--

वकालतके पेशेका एक सदस्य और नेटालका एक पुराना अधिवासी होनेके नाते, मेरी समझमें मुझे अपने और जनताके प्रति न्याय बरतते हुए कहना चाहिए कि मेरे खिलाफ लगाये गये अभियोगोंका यह अर्थ निकलता है कि मुझपर डाली गई जिम्मेदारीको मैंने स्वीकार किया। मेरी मान्यता है कि जिस प्रदर्शनके लिए ये लोग प्रान्तसे बाहर ले जाये गये उसका उद्देश्य अच्छा था। मुझे कहना चाहिए कि मालिकोंसे मेरा कोई विरोध नहीं है और मुझे इस बातका अफसोस है कि इस आन्दोलनमें उनका भारी नुकसान हो रहा है। मैं मालिकोंसे भी अपील करता हूँ और खुद तो महसूस करता ही हूँ कि कर ऐसा है जो हमारे देशवासियोंको बहुत भारी पड़ रहा है और उसे हटा दिया जाना चाहिए। मैं यह भी अनुभव करता हूँ कि श्री स्मट्स और प्रोफेसर गोखलेके बीच मान्य स्थितिको ध्यानमें रखते हुए मुझे उनको सम्मान रक्षाके लिए एक जोरदार प्रदर्शन करना होगा। मैं उन कष्टोंसे भली भांति परिचित हूँ जो स्त्रियों और गोदके बच्चोंको झेलने पड़ते हैं। कुल मिलाकर, मैं समझता हूँ कि जिस पेशेका मैं सदस्य हूँ मैंने उसके सिद्धान्तों और प्रतिष्ठाका अतिक्रमण नहीं किया है। मैं महसूस करता हूँ कि मैंने अपने देशवासियोंको यह सलाह देकर अपने कर्तव्यका पालन किया है, और उन्हें फिरसे यही सलाह देना मेरा कर्तव्य है कि जबतक कर नहीं हटाया जाता तबतक वे काम छोड़ दें और दानसे प्राप्त अन्नपर गुजारा करें। मुझे अच्छी तरहसे मालूम है कि कष्ट सहे बिना उनको शिकायतें दूर होना असम्भव है ।

इसके बाद मजिस्ट्रेटने निम्नलिखित फैसला सुनाया:-- इस मामलेमें अभियुक्तने तीन अभियोगोंको स्वीकार किया है और कानूनके जिस खण्डके अन्तर्गत अभियुक्तपर आरोप लगाया गया है उसके अनुसार प्रत्येक प्रवासीको प्रान्त छोड़ने के लिए उकसाने या उकसानेकी कोशिश करनेके अपराधमें उकसाये गये प्रतिव्यक्तिपर २० पौंडका जुर्माना किया जा सकता है। श्री गांधी एक शिक्षित सज्जन हैं, और उन्हें वकालतके पेशेका एक सदस्य होनेका सम्मान प्राप्त है। तथा उन्होंने जो भी किया है वह अपने कार्यों के परिणामको जानते हुए किया है। फिर मजिस्ट्रेटने उन परिस्थितियोंका जिक्र किया जिनमें भारतीय इस प्रान्तमें लाये गये और उन शर्तो का भी उल्लेख किया जिनपर वे गिरमिटकी मियाद पूरी होनेके बाद बने रहनको राजी हुए थे। मजिस्ट्रेटने जनरल स्मट्स द्वारा भारतीयोंको दिये गये तथाकथित वादेके सम्बन्धमें भारतीयोंके इरादेका भी उल्लेख किया। नेटालके संसद सदस्योंने स्त्रियों और बच्चोंकी हदतक करको हटानेकी बात मान ली थी लेकिन पुरुषोंपर से नहीं। अतएव भारतीयोंको दिया गया वचन सरकारने नहीं तोड़ा। म समझता हूँ कि इसी आधारपर श्री गांधीने भारतीयोंको