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१८०. न्याय-सचिवको लिखे पत्रका सारांश'

[चार्ल्सटाउन
अक्टूबर ३१, १९१३]

श्री गांधीने ३१ तारीखको चार्ल्सटाउनसे न्याय-सचिवको एक पत्र लिखकर सूचित किया कि भारतीय बहुत बड़ी संख्यामें गिरफ्तारीके लिए आगे आ गये हैं और चूंकि सरकारके पास उनको रखने और खिलानेका कोई इन्तजाम नहीं है इसलिए वहाँकी भारतीय समिति सरकारके खर्चपर उनके खाने-ठहरनेका प्रबन्ध कर रही है। श्री गांधीने सुझाव दिया कि सभी लोगोंको गिरफ्तार कर लिया जाये और कहा कि यदि ऐसा नहीं किया गया तो न चाहते हुए भी वे ट्रान्सवालमें प्रवेश करनेके लिए अपना कूच जारी रखने पर विवश होंगे। उन्होंने सरकारको चेतावनी दी कि वह सरहदपर भारतीयोंको स्वतन्त्र न रहने दे। श्री गांधीने कहा कि सत्याग्रहियोंकी इच्छा इस बातकी पूरी चौकसी रखनेकी है कि एक भी भारतीय चोरी-छुपे प्रवेश न करने पाये।

[अंग्रेजीसे
इंडियन ओपिनियन, १२-११-१९१३

१८१. प्रवासी-अधिकारीको लिखे पत्रका सारांश'

[चार्ल्सटाउन
अक्टूबर ३१, १९१३]

श्री गांधीने उसी दिन एक पत्र प्रिटोरिया-स्थित प्रवासी अधिकारीको लिखा था। इसमें बताया गया था कि यद्यपि सत्याग्रही यह घोषित करते हैं कि वे अपील नहीं करना चाहते। फिर भी समस्त सत्याग्रहियोंको ट्रान्सवालको सीमापर अपील करनेके लिए तीन दिनका नोटिस दिया जाता है और उन्हें इच्छानुसार इधर-उधर घूमने दिया जाता है। श्री गांधीकी रायमें अधिनियमकी रूसे सभी स्थितियों में चेतावनी देना जरूरी नहीं है।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १२-११-१९१३

१. मूल पत्र उपलब्ध नहीं है।

२. हड़तालकी स्थितिसे निपटनेकी सरकारी नीति क्या थी, इसका जिक्र गवर्नर जनरल द्वारा ६ नवम्बरको उपनिवेश मन्त्रालयको भेजे गये खरीतेमें किया गया है। देखिए परिशिष्ट १० ।

३. मूल पत्र उपलब्ध नहीं है।