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१७८. पत्र: गो० कृ० गोखलेको

न्यूकैसिल
अक्टूबर २९, १९१३

प्रिय श्री गोखले,

पोलक आपको संघर्षकी प्रगतिसे अवगत रखते ही हैं। मैं जल्दी ही हड़तालियोंके साथ गिरफ्तार होनेके लिए कूच कर रहा हूँ। इस पत्र द्वारा मैं आपसे यह अनुरोध कर रहा हूँ कि आप कृपया लन्दनमें श्री पोलकके निवासकी सुविधा कर दें। उस हालतमें वे सार्वजनिक कार्य कर सकेंगे और लन्दन-समितिको भी संभाल सकेंगे। मैं समझौता होते ही दक्षिण आफ्रिका छोड़ दूंगा और उनका ख्याल है कि मेरे चले जानेके बाद वे दक्षिण आफ्रिकामें रहकर कारगर ढंगसे काम नहीं कर सकेंगे। मैं उनके इस ख्यालसे सहमत हूँ। श्री दुबेने उन्हें लन्दनमें बसनेका निमन्त्रण दिया है। किन्तु यह तो तभी हो सकता है जब उन्हें भारतके ऐसे कुछ वकीलोंसे मदद मिलती रहे जिनका प्रिवी कौंसिलके मुकदमोंसे सम्बन्ध रहता है। आप जानते ही हैं, वे वहाँ प्रिवी कौंसिलमें एजेंटके रूपमें वकालत करना चाहते हैं।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी प्रति (सी० डब्ल्यू० ९३१) से।

१७९. तार : गृह-मन्त्रीको

[चार्ल्सटाउन
अक्टूबर ३०, १९१३]

गृह-मन्त्री
प्रिटोरिया

न्यूकैसिल भारतीय समितिको पता चला है कि जेल डॉक्टरने भारतीय सत्याग्रही महिलाओंके ब्लाउज़ उतार कर और बाँह पकड़ कर जबर्दस्ती टीके लगाये। महिलाओंको घी भी नहीं दिया जाता। अनुरोध है कि जाँच की जाये और शीघ्र राहत दी जाये।

गांधी

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ५-११-१९१३

१ इसके उत्तर में जेल-निदेशकने लिखा कि न्यूकैसिलके मजिस्ट्रेटको यह निर्देश दे दिया गया है कि यदि सत्याग्रहियोंको टीका लगवानेमें धार्मिक आपत्ति हो तो उनको जबर्दस्ती टीका न लगाया जाये।