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१६५. भेंट : ईवनिंग क्रॉनिकलको

[जोहानिसबग
अक्टूबर १७, १९१३ के बाद]

श्री फिशरके वक्तव्यके' सम्बन्धमें 'ईवनिंग क्रॉनिकल' (जोहानिसबर्ग) के संवाददाताके भेंट करनेपर श्री गांधीने कहा कि संसदके पिछले अधिवेशनमें माननीय श्री फिशर यही कहते रहे कि जबतक सत्याग्रहकी बात की जाती है, वे कुछ नहीं देंगे। किन्तु वे देते रहे। उन्होंने अपनी यह धमकी भी वापस ले ली कि यदि भार- तीयोंने अधिक अच्छा व्यवहार पानेकी अपनी मांग वापस न ली तो वे विवाह-सम्बन्धी धारामें किया गया मामूली-सा संशोधन भी वापस ले लेंगे। अपनी उस धमकीके बावजूद श्री फिशरने सीनेटमें उसी संशोधनको स्वीकार कर लिया जिसे भारतीयोंने सुझाया था। इसलिए मैं यह कहे बिना नहीं रह सकता कि श्री फिशरकी बातोंको महत्व नहीं देना चाहिए।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २९-१०-१९१३

१६६. कुलसम बीबीका मुकदमा

इस मुकदमेकी अपील अदालतमें ले जानेकी हलचल डर्बनमें चल रही है। इसके लिए रुपया इकट्ठा करनेके उद्देश्यसे एक बाइस्कोपका प्रदर्शन भी किया गया है। मुकदमेका ऊपरकी अदालतमें जाना ठीक ही है। किन्तु इससे कोई विशेष लाभ होगा, समाजको ऐसा मान लेनेका कारण नहीं है। मुकदमा हमारे विरुद्ध भी जा सकता है और हमारे पक्षमें भी। यदि इसका परिणाम शुभ हो तो भी जिस स्त्रीका विवाह दक्षिण आफ्रिकामें सम्पन्न हुआ है वह तो रखेल ही मानी जायेगी, यह स्मरण रखना चाहिए। इसलिए जो लोग इस संघर्षको समझते हैं उन्हें चाहिए कि वे उसमें तनिक भी ढील

१. लन्दनमें रायटरके संवाददाता द्वारा भेंट करनेपर श्री फिशरने कहा था: भारतीयोंसे सम्बन्धित मामले मेरे विभागके सुपुर्द हैं और किसी महत्त्वपूर्ण मुद्देके सम्बन्धमें कानूनको बदलना असम्भव है। सच तो यह है कि दक्षिण आफ्रिकामें लोगोंकी भावना कानूनको और कठोर बनानेके पक्षमें है । सरकार कानूनको ज्योंका-त्यों कायम रखकर सन्तोष करेगी। भारतीयोंकी माँग पूरी करनेके लिए जहाँ सम्भव होगा हम प्रशासनिक व्यवस्था करेंगे; किन्तु दक्षिण आफ्रिकाकी जनभावना और आवश्यकताओंका तो ध्यान रखना ही होगा । इसलिए भारतीयोंको अपने हितकी दृष्टिसे कुछ सावधान और नरम होना चाहिए । कोई अस्थायी व्यवस्था तभी सम्भव है जब भारतीय सैद्धांतिक प्रश्नोंको छोड़ दें और एक व्यावहारिक रवैया अपनाएँ ।"