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सम्पूर्ण गाँधी वाङ्मय


द्वारा हल की जा सकती है और उससे संघके सामान्य विवाह कानूनमें किसी प्रकारकी बाधा नहीं पड़ेगी।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १५-१०-१९१३

१६४. पत्र: हरिलाल गांधीको

[डर्बन]
आश्विन बदी २ [अक्टूबर १७, १९१३]'

चि० हरिलाल,

तुम्हारा पत्र नहीं मिला इससे मनमें दुःख होता है। तुमने इस सम्बन्धमें आलस्य करके दुहरा अपराध किया है। बापके प्रति इतना कर्तव्य पूरा करना चाहिए। इसमें भूल करना पहला अपराध है, और तुमने नियमपूर्वक पत्र लिखनेका वचन दिया है सो उसे भंग करना दूसरा अपराध है। तीन डाकें आ चुकी हैं; किन्तु एकमें भी तुम्हारा पत्र नहीं आया है। भाई सोराबजी और रतनसी' तुम्हारे बाद गये हैं। उनके पत्र तुम्हारी अपेक्षा अधिक आय हैं। चंची तुमसे अधिक पत्र लिखती है। तुम्हारा पत्र न आनेसे बा भी दुःखी होती है।

तुम दोनों गिरफ्तार होनेके लिए आ सकते हो। चंची लड़ाईके दिनोंमें तभी आये जब उसमें जेल जानेका साहस हो। तुम्हें परीक्षाकी राह न देखनी चाहिए, मैं अपनी यह सलाह तो दे ही चुका हूँ। यदि तुम्हारी अपनी ही इच्छा हो तो मैं बाधा डालना नहीं चाहता। पैसा डॉक्टरसे ले लेना। सम्भव है जब तुम आओ तब मैं जेलमें होऊँ। मेरा खयाल है कि मैं किसी-न-किसी तरह गिरफ्तार हो जाऊँगा। मैं वैसे प्रयत्न कर रहा हूँ। यदि तुम्हें यह पत्र पहुँचनेसे पहले समझौतेका समाचार मिल जाये तो तुम्हारे आनेकी आवश्यकता न रहेगी।

मेरी कामना है कि तुम नीरोग और निश्चिन्त रहो।

बापूके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरों में मूल गुजराती प्रति (एस० एन० ९५३७) की फोटो-नकलसे।

१. इसमें जेल जानेका उल्लेख है, इससे ऐसा प्रतीत होता है कि यह १९१३ में लिखा गया होगा।

२. सोराबजी शापुरजी अडाजानिया, देखिये खण्ड १० ।

३. सोढा, देखिए खण्ड १०

४. डॉक्टर प्राणजीवन मेहता ।

५. गांधीजी नवम्बर ७, १९१३ को गिरफ्तार किये गये थे।