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१६३. एक अधिकृत वक्तव्य

भारतीय सत्याग्रह आन्दोलनकी वर्तमान स्थिति निम्नलिखित वक्तव्यम स्पष्ट की गई है। इसे अधिकृत रूपसे रायटरकी एजेंसी और प्रेसको भेजा गया है। भारतीय समाजकी मांगे ये हैं :

(१) तीन पौंडका वह सालाना कर हटाया जाये जो भूतपूर्व गिरमिटिया भारतीयों-- मर्द, औरत और बच्चों -- को नेटालमें दुबारा गिरमिटसे मुक्त रहनेकी कीमतके रूपम देना पड़ता है।

(२) (क) संघके विवाह-कानूनमें एक ऐसा संशोधन किया जाये जिससे भारत अथवा दक्षिण आफ्रिकामें हिन्दू और मुस्लिम धर्म में निर्धारित रीतियों से सम्पन्न भारतीयोंके एकपत्नी-विवाहोंकी वैधता मान ली जाये। यद्यपि ये दोनों ही धर्म बहुपत्नी-विवाह प्रथाकी अनुमति देते हैं, तथापि आँकड़ोंसे जाहिर होता है कि केवल एक प्रतिशत भारतीय विवाह बहुपत्नीवाले होते हैं।

(ख) पहलेसे अधिवासी भारतीयोंकी मौजूदा एकाधिक पत्नियों (जो कुल मिलाकर १०० से अधिक नहीं है) और उनके बच्चोंको सरकार प्रवेश करने दे। संघके उद्घाटनके वक्त ऐसी ही स्थिति थी। यह मांग नहीं है कि बहुपत्नी-प्रथाको कानूनी मान्यता दी जाये।

(३) दक्षिण आफ्रिकामें जन्मे भारतीयोंको केप प्रान्तमें प्रवेशका अधिकार फिर हासिल हो। यह अधिकार उन्हें प्रवासी विधेयक पेश होनेके समय प्राप्त था और उसे बने रहने देनेका अर्थ व्यवहारत: इतना ही होगा कि नेटाल और ट्रान्सवालसे प्रतिवर्ष केपमें मुश्किलसे एक दर्जन भारतीय प्रविष्ट होंगे।

(४) सरकार कहती है कि प्रवासी-अधिनियममें कोई जाति-भेद नहीं है। अतएव सरकारको यह स्वीकार कर लेना आवश्यक है कि फ्री स्टेटकी सरहदपर कानूनन किसी भारतीयसे ऐसा शिनाख्ती-ज्ञापन नहीं मांगा जायेगा जिसे देना किसी यूरोपीयके लिए उतना ही आवश्यक न हो। कार्य-रूपमें इसका यह अर्थ नहीं कि भारतीय अवश्य ही फ्री स्टेटमें प्रवेश करेंगे ही, इसका इतना ही अर्थ होगा कि कोई भारतीय प्रवेश करे तो उसपर जमीन रखने तथा खेती-बाड़ी और व्यापार करनेका निषेध लागू होगा।

(५) एक घोषणा की जाये कि मौजूदा कानून, जैसे कि ट्रान्सवालका स्वर्ण-कानून और कस्बा-अधिनियम, केप और नेटालके परवाना कानून और प्रवासी अधिनियम आदि, के अमलमें उदारतासे काम लिया जाये और निहित अधिकारोंका उचित ध्यान रखा जायेगा। सरकारकी नीति, उदाहरणके लिए, यह है कि जो भारतीय अधिक समय तक प्रान्तसे गैर-हाजिर रहे हों, उनके पास पूर्व अधिवासके समुचित प्रमाण होनेके बावजूद उन्हें अपने-अपने प्रान्तोंमें पुनः प्रवेश करनेसे रोक दिया जाये। यह स्थिति असहनीय है।

पहलेवाले मुद्दे पर श्री गोखलेसे एक निश्चित वादा किया गया था। बाकी सवाल १९११ के अस्थायी समझौतेसे पैदा होते है।