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१६२. पत्र : जेल-निदेशकको'

[जोहानिसबर्ग]
अक्टूबर ९, १९१३

[महोदय,]

जोहानिसबर्गके फोर्ट जेलमें पिछले सप्ताह अपनी सजा पूरी करनेवाले, सर्वश्री मेढ और अन्य ब्रिटिश भारतीय सत्याग्रहियोंकी शिकायत है कि डॉ० विसरने उनके साथ अकारण ही अत्यन्त असभ्य और अपमानजनक व्यवहार किया था। डॉक्टरी परीक्षाके लिए उनसे दूसरे कैदियोंके सामने ही बिलकुल नंगा होनेको कहा गया। उन्होंने डॉक्टरसे सादर निवेदन किया कि ऐसा करना उनकी नैतिकता और शिष्टताकी भावनाके विरुद्ध है, किन्तु साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि यदि एक अलग कमरेमें उनकी परीक्षा की जाये तो उसके लिए वे तैयार है। इस निवेदनपर डॉ० विसर भभक उठे और उन्होंने अत्यन्त अपमानजनक शब्दोंका प्रयोग किया। उनके शब्द थे: कुली लोग"। डॉक्टरने उनपर अवज्ञाका आरोप भी लगाया, परन्तु मेरी समितिको सूचित किया गया है कि इस आरोपपर आगे कोई कार्रवाई नहीं की गई। जेल सुपरिन्टेन्डेन्टसे इसकी शिकायत करनेपर उनकी परीक्षा अलगसे की गई। समितिको आशा है कि इस शिकायतकी जांच कराई जायेगी और ऐसे कदम उठाये जायेंगे जिससे आगेसे कोई अफसर किसी [साधारण] कैदीसे भी वैसी भाषाका प्रयोग न कर सके, कहा जाता है, जिसका प्रयोग डॉ. विसरने किया।

इन रिहा सत्याग्रहियोंने यह भी शिकायत की है कि उनको भोजनके साथ पहलेकी भाँति न तो घी दिया गया था और न कोई वनस्पति तेल। मेरी समितिकी जानकारीके अनुसार उनको भोजनमें भात, मकईका दलिया, सब्जियाँ और थोड़ी-सी रोटी दी जाती है। निवेदन है कि हमारी समितिने पिछले सत्याग्रह आन्दोलनके दौरान ही यह सिद्ध कर दिया था कि मानव-शरीरको स्वस्थ रखनेके लिए थोड़ा-बहुत घी और वनस्पति तेल नितान्त आवश्यक है। मेरी समितिकी जानकारीके अनुसार वतनी कैदियोंको अब भी उनकी खुराकमें एक वक्त चर्बी दी जाती है। इसीलिए सादर निवेदन है कि मांस या चर्बी न खा सकनेवाले ब्रिटिश भारतीय कैदियोंको पहलेकी भांति ही प्रतिदिन एक औंस घी देनेके आदेश जारी कर दिये जायें।

आपका,

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २२-१०-१९१३

१. इस पत्रके साथ ही समाचारपत्रोंको भेजा गया ७ अक्तूबरका वह पत्र भी प्रकाशित किया गया था जिसमें सुरेन्द्र बी० मेढ, प्रागजी के० देसाई और मणिलाल गांधीने सम्पादकोंसे अनुरोध किया था कि वे उनके साथ किये गये पाशविक व्यवहारके विरोधमें आवाज उठाये ।