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१५८. पत्र: ऑलिव डोकको

जोहानिसबर्ग
अक्टूबर ३, १९१३

प्रिय ऑलिव'

कुमारी श्लेसिन पहली व्यक्ति थीं जिन्होंने मुझे कल याद दिलाया कि मेरी आयु एक साल और घट गई। तुम्हारे पत्रने दूसरी बार यही याद दिलायी। मेरे जन्म-दिनको याद रखने के लिए तुम्हें अनेक धन्यवाद ।

माँको मेरी याद दिलाना और कहना कि यदि मैं उनसे मिलने नहीं आ सका हूँ तो उसका अर्थ यह नहीं कि मुझे परिवारकी सुध नहीं रहती। पिताजीको याद करनेके विशेष कारण है और उस यादके साथ-साथ तुम सबकी याद हो आई है। लेकिन माताजी जानती हैं कि मैं दिखावा पसन्द नहीं करता। जब कभी भी मेरी वहाँ जरूरत हो, या कुछ कर सकता हूँ तो आप सब मुझे उसकी आज्ञा दे सकते हैं।

हृदयसे तुम्हारा,
मो० क० गांधी

गांधीजीके स्वाक्षरों में मूल अंग्रेजी प्रति (सी० डब्ल्यू०.५६५८) की फोटो-नकलसे। सौजन्य : सी० एम० डोक। १५९. प्रस्ताव: पाटीदार संघकी सभामें

जोहानिसबर्ग
अक्टूबर ५, १९१३

पाटीदार संघकी यह सभा निश्चय करती है कि उसकी रायमें 'ट्रान्सवाल लीडर' की यह खबर अनुचित और असत्य है कि भारतीय समाजका व्यापारी-वर्ग सत्याग्रहके विरुद्ध है और सम्भवतः समाजके केवल कुछ बहुत ही गरीब लोग संघर्ष में भाग लेंगे। यह सभा तन-मनसे आन्दोलनके साथ है और सरकारको भेजे गये श्री काछलियाके पत्रसे सहमत है। वह आन्दोलनमें धन और जनकी सहायता देनेका जिम्मा लेती है और सरकारसे प्रार्थना करती है कि वह समाजकी उचित मांगोंको स्वीकार करके, जो लोग जेल जा चुके हैं उनके कष्टोंको समाप्त करे।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १५-१०-१९१३

१. पादरी जे० जे० डोककी पुत्री ।

२. इस सभामें गांधीजीने भाषण दिया था। उसके बाद कुछ भारतीयोंने तत्काल जेल जानेका निश्चय प्रकट किया । किन्तु गांधीजीके भाषणकी रिपोर्ट उपलब्ध नहीं है । सभामें जो प्रस्ताव स्वीकार किया गया उसका मसविदा अनुमानत: गांधीजीका तैयार किया हुआ था ।