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हथियारोंके बिना असहाय

इस प्रकार सरकारसे हमारी तीन माँगें है। प्रथम तो यह कि इस मुल्कमें जो विवाह हमारे अपने धर्मके अनुसार हुए हैं तथा आगे भविष्यमें होनेवाले हैं, वे कानूनसे जायज माने जायें। दूसरी यह कि "एकपत्नी विवाह" में हमारे धर्मानुसार हुए विवाहका समावेश होना चाहिए। तीसरी यह कि जिस भारतीयने एकसे अधिक स्त्रियोंके साथ विवाह किया हो, उन स्त्रियोंको भी इस मुल्कमें प्रवेशकी अनुमति होनी चाहिए।

सरकार यदि इतनी माँगें पूरी न करे तो हम एक पलके लिए भी निश्चिन्त होकर न बैठे। यह वार स्त्रियोंपर भी है और इसलिए उन्हें भी संघर्ष में उतरना पड़ा है। इससे अपने धर्मका भी अपमान होता है और अपने समाजकी बदनामी होती है। इस दृष्टिसे शादीका यह प्रश्न खूनी कर [तीन-पौंडी कर] से भी बढ़-चढ़कर है। वह कौम जो अपनी स्त्रियोंका सम्मान न रख सके और अपनी सन्तानकी सम्हाल न कर-वह कौम कहलानेका दावा नहीं कर सकती। वह कौम नहीं पशु है। पशु भी अपने बच्चेका बचाव करने के लिए सींग मारता है। तब जो मर्द है वे क्या बैठे रहेंगे और पहनने-ओढ़ने तथा ऐश-आराममें मशगूल रहेंगे।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १-१०-१९१३

१५५. हथियारोंके बिना असहाय

भारतीयोंको हथियार रखनेके परवाने नहीं दिये जाते, इस विषयपर इस अखबारमें संवाददाताओंने बड़ी चर्चा की है। हमारी उनसे सहानुभूति है। किन्तु हमारी धारणा यह है कि मनुष्यको हथियारकी जरूरत नहीं है। परन्तु यह बात तो जिसने धनका संग्रह करना छोड़ दिया हो उसके सम्बन्धमें लागू हो सकती है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि जो व्यापार करते है और दूसरोंके आक्रमणसे बचना चाहते हैं उनका काम हथियारके बिना नहीं चल सकता। स्पष्ट है कि संवाददाताओंके पत्रों आदिसे काम नहीं चलेगा। नेतागण इस दिशामें परिश्रम करें तभी कुछ हो सकता है। पर इस बीच हम अपने आलोचकोंसे कहना चाहते हैं कि वे (इस सम्बन्धमें) सरकारको लिखे गये पत्र और उनके उत्तर हमें भेजते रहें। कहाँ-कहाँ लूट-पाट हुई, उसका पक्का सबूत; आसपासकी बस्ती कैसी है- आदि सारी हकीकत साफ अक्षरोंमें हमें लिख भेजी जाये तो हम कदम उठानेको तैयार हैं। हमें यह अवसर भी इसके उपयुक्त लगता है। उपयुक्त समयपर सत्याग्रहकी इस लड़ाई में अनेक बातोंका समावेश किया जा सकता है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १-१०-१९१३