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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


हो किन्तु उनकी गिनती रखेल स्त्रियों में ही रहे। इससे उन्हें अदालतोंसे कोई अधिकार नहीं मिलेंगे और उनके वारिसोंको तो कतई नहीं। भला भारतीय इसे कैसे स्वीकार कर सकते हैं। (भारतीय इसे कभी स्वीकार नहीं करेंगे)। सरकारके साथ [इस सम्बन्धमें ] सख्त लिखा-पढ़ी हुई। उसने प्रथम श्री अलेक्जेंडर और फिर श्री श्राइनर द्वारा सुझाये गये फेरफार नये कानून में किये। परन्तु ये परिवर्तन उसने न तो प्रसन्न मनसे ही किये और न विचारपूर्वक ही; ये व्यावहारिक भी नहीं थे। अतः इनमें खामियाँ रह गई और अन्तमें परिणाम यह हुआ कि हिन्दुस्तानमें किये गये विवाह वैव माने गये। परन्तु इस मुल्कमें हुए विवाह और आगे होनेवाले भी जो हमारे धर्मानुसार हों-- कानूनन जायज न रहे। अतः हम सरकारसे यह मांग करते हैं कि उसने भारतमें हुई शादियोंके सम्बन्धमें जो निर्णय लिया है वही निर्णय दक्षिण आफ्रिका में हुई तथा भविष्य में यहाँ होनेवाली शादियोंकी. निस्वत ले। यह भी स्पष्ट किया गया है कि ऐसा किस प्रकार किया जाये।

दूसरा सवाल यह है कि कानूनमें जो परिवर्तन किया गया है उसके आधारपर एक स्त्रीसे किया गया विवाह कानूनी माना जाये। कुलसुम बीबीके मामलेमें सरकारने जानबूझकर यह सवाल खड़ा किया है कि जिसकी शादी ऐसे धर्मके अनुसार हुई हो जो एकाधिक स्त्रियों से विवाहकी मान्यता देता है, ऐसी शादियोंको नये कानूनकी स्वीकृति नहीं है। यदि यह मतलब सही है तो जो हानि न्यायमूर्ति सर्लके निर्णयसे हुई है वह दूर नहीं होती और सरकारने [हमारे साथ] धोखा ही किया है, यह माना जायेगा। सरकारको यह मालूम था कि हमने जो माँग की थी वह हिन्दू और मुसलमान धर्मों के अनुसार की गई शादियों के विषयमें थी। और अब यदि उन्हीं शादियोंको नामंजूर करनेका विचार सरकारने कर लिया है तो न केवल उसने हमें बल्कि संसदको, शाही-सरकारको और भारत-सरकारको भी धोखा दिया है। कुलसुम बीबीका सवाल हमने नहीं, स्वयं सरकारने उठाया है। इस सम्बन्धमें सरकार निर्णय माँगती है। सम्भवतः ऐसा नहीं होगा और जो ऐसा हो तो सरकारको नीचा देखना पड़ेगा और कानून में पुनः ऐसा परिवर्तन करना होगा जिससे हमारे धर्मोके अनुसार की गई शादियोंका समावेश उसके अन्तर्गत हो।

तीसरा प्रश्न है एकसे अधिक [विवाहित] स्त्रियोंका। यह प्रश्न १९११ में उठा था। किसी भारतीयके एकसे अधिक पत्नियाँ हों तो उन्हें आने दिया जाता था। किन्तु सरकारने यह प्रश्न उठाया और न्यायमूर्ति वेसेल्सने निर्णय दिया कि यहाँके [दक्षिण आफ्रिकाके विवाह-1 कानूनके मुताबिक एक ही पत्नी आ सकती है। इस सम्बन्धमें श्री काछलियाने सरकारको पत्र लिखा। सरकारसे उत्तर मिला कि इस प्रकारके मामलोंपर सरकार ध्यान देगी। इससे हमने सन्तोष मान लिया। हमारी मांग बहु-पत्नीक विवाहको कानूनी मान्यता देने की नहीं थी किन्तु अधिक स्त्रियोंको इस मुल्कमें आनेकी अनुमति देनेकी बाबत थी। सरकार अब कह रही है कि उसके १९११ के पत्रका जैसा अर्थ हम लगा रहे हैं वैसा नहीं लगाया जा सकता; और हम तो यह मानते है कि उसका दूसरा अर्थ हो ही नहीं सकता।