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१५४. विवाहका प्रश्न

गत सप्ताह जिस प्रकार हम तीन पौंडी खूनी कानूनकी चर्चा कर चुके हैं, उसी प्रकार अब विवाहके सम्बन्धमें भी सोच-विचार करना जरूरी है। इस संघर्ष में कोई एक ही मुद्दा मुख्य हो, ऐसी बात नहीं है किन्तु अनेक मुद्दे है और जो [प्रत्यक्ष रूपसे] परस्पर सम्बन्ध रखते नहीं जान पड़ते। जिन-जिन प्रश्नोंको लेकर हम लड़ रहे हैं उन्हें समझ लेना भारतीय समाजके लिए जरूरी है। विवाहके प्रश्नको तीन भागोंमें बाँटा जा सकता है।

प्रथम तो यही सवाल है कि हिन्दू-मुसलमान या पारसी धर्मानुसार जो विवाह हो चुके हैं। वे कानूनके अनुसार ठीक नहीं हैं। न्यायमूर्ति सर्लके निर्णयसे पूर्व भारतीय विवाहोंके बारेमें यहाँ कतई कोई समस्या नहीं थी। सारे विवाह अदालतोंसे मंजूरशुदा माने जाते थे। परन्तु न्यायमूर्ति सर्लके निर्णयके बाद सब-कुछ बदल गया है। यह निर्णय सरकारने जानबूझकर लिया। जो सख्तियाँ संघ-राज्यसे पूर्व नहीं थीं वे उसके निर्माणके पश्चात् होने लगी। सरकारकी नीयत ही यह रही है कि जैसे भी बने भारतीयोंके चरण दक्षिण आफ्रिकासे हटाये जायें। अबतक सरकारने औरतोंकी ओर पंजा नहीं बढ़ाया था परन्तु अब उसकी प्रपंची दृष्टि उनपर भी पड़ने लगी है। औरतोंका आगमन बन्द किया जाये तो उनके बच्चोंका भी आना बन्द हो जायेगा, ऐसा खूनी विचार सरकारने किया जान पड़ता है। इसीलिए सरकारी अधिकारियोंने कानूनकी छानबीन की और इसमें उन्हें मालूम हुआ कि भारतीय विवाह दक्षिण आफ्रिकाके कानूनके अनुसार जायज नहीं हैं ऐसा साबित किया जा सकता है और यदि ऐसा हो सके तो सरकारकी मुराद एक बड़ी हद तक पूरी हो। इसके आधारपर सरकारने एक स्त्रीके हकोंपर हमला किया और न्यायमूर्ति सर्लकी अदालतमें मामला आया। उन्होंने निर्णय दिया कि जिस धर्ममें एकसे अधिक स्त्रियोंसे विवाह करनेकी छूट है उस धर्मके अनुसार यद्यपि एक ही स्त्रीसे विवाह हुआ हो तो भी उस विवाहको दक्षिण आफ्रिकाका [विवाह-] कानून स्वीकृति नहीं दे सकता। इस निर्णयके बाद ही नेटालकी अदालतके मास्टरने फैसला दिया कि जो विवाह ईसाई-धर्मके रिवाजके मुताबिक न हुआ हो ऐसे विवाहमें पतिको मृत्युके बाद वह विधवा, उसके बाल-बच्चे उत्तराधिकारके करसे मुक्त नहीं हो सकेंगे। साथ ही न्यायमूर्ति गाडिनरने लेडी स्मिथमें यह निर्णय दिया कि इस प्रकारसे विवाहित स्त्रीको अपने पतिके विरोधमें गवाही न देनेका हक प्राप्त नहीं होता। इन तीनों निर्णयोंका परिणाम तो यह हुआ कि भारतीय स्त्री और उसके बच्चे इस मुल्कमें न आ सकें। और यहाँ जो स्त्रियाँ रहती है वे मात्र रखेल स्त्रियाँ गिनी जायें तथा उनके बाल-बच्चे अपने माँ-बापके वारिस न माने जायें। सरकार कानूनन ऐसी स्थितिका भी निर्माण करके ऊपरसे अब यह जताना चाहती है कि वह ऐसी मेहरबान है कि नये कानूनके रहते हुए भी पहले ही की तरह, प्रति व्यक्तिको एक-एक स्त्रीको आने दिया जायेगा। पर मतलब तो इसका यही हुआ कि स्त्रियोंको निवासका आदेश तो