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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


का संशोधन स्वीकार किया गया। सरकारको मालूम था कि भारतके सबसे बड़े दो धर्म, अर्थात् हिन्दू धर्म और इस्लाम, बहुपत्नी विवाहका निषेध नहीं करते, इसलिए यदि उसने संशोधनोंको यह मान कर स्वीकार किया था कि 'एकपत्नी विवाह' वाला विशेषण लगानेपर कानूनमें इन दो महान् धर्मोकी विधिसे ब्याही औरतें फिर भी शामिल नहीं होंगी, तो उसने निश्चय ही संसद और भारतीय समाजको धोखा दिया। हम सोचते हैं कि सर्वोच्च न्यायालय सरकारकी व्याख्या माननेसे इनकार कर देगा, किन्तु यदि इसका निर्णय इससे विपरीत हुआ तो सारे भारतीय विवाहोंको कानून-सम्मत बनाने के लिए प्रवासी अधिनियमको बदलना आवश्यक हो जायेगा। इस अन्तिम घड़ी में भी यह सरकारके हाथमें है कि वह मुकदमेको वापस ले ले और अदालत द्वारा निर्णयका आग्रह न करे।

अब रहा एकाधिक पत्नियोंके प्रवेशका सवाल; यह प्रवेशके बाद उनके कानूनी दर्जेके सवालसे अलग है। परम्परा सदासे यही रही है कि अधिवासी भारतीयोंकी ऐसी पत्नियोंको प्रवेश करने दिया जाये। ट्रान्सवालमें तो ऐसे सम्बन्धोंका रजिस्ट्रीके प्रमाणपत्रोंपर भी उल्लेख किया जाता है। इस परम्परामें व्याघातका पहला धक्का १९११ में, जस्टिस वेसेल्सके एक निर्णयसे लगा था। उसे भी सरकारने ही निमन्त्रित किया था। उस फैसलेके फलस्वरूप ब्रिटिश भारतीय संघने सरकारसे पत्र-व्यवहार किया और सरकारने आश्वासन दिया कि जिन मामलोंमें लोगोंको कठिनाई उठानी पड़ी है उनपर वह विचार करेगी। इस पत्र-व्यवहारसे ऐसा प्रतीत हुआ कि यह सवाल हल हो गया, क्योंकि एकाधिक पत्नियोंके बारे में भारतीयोंकी मांग यह नहीं है कि उन्हें कानूनी तौरपर मान्यता मिले बल्कि यह है कि अधिवासी भारतीयोंकी वर्तमान एकाधिक पत्नियोंको संघमें प्रवेश करनेका अधिकार मिले। किन्तु सरकारका रवया अब अपने पत्रमें दिये गये आश्वासनसे पीछे हटनेका लगता है। हम इस पत्र-व्यवहारको अपने अगले अंकमें प्रकाशित करेंगे जिससे पाठक स्वयं निर्णय कर सके कि पत्र-व्यवहारसे क्या उसके सिवा कोई अर्थ निकलता है जो भारतीय समाजने लगाया है।

संक्षेपमें, समाजकी, बहुत मामूली, तीन मांगे हैं :

(१) दक्षिण आफ्रिकामें अबतक सम्पन्न, और आगे सम्पन्न होनेवाले एकपत्नी विवाहों को कानूनसम्मत बनाया जाये; (२) “एकपत्नी" शब्दके अन्तर्गत उन धर्मोको विधियोंसे सम्पन्न विवाहोंको भी शामिल किया जाये जिनमें बहुपत्नी विवाहका निषेध नहीं है, बशर्ते कि जिस स्त्रीके वैवाहिक सम्बन्धको मान्यता दी जानेवाली हो, वह अपने पतिकी अकेली पत्नी है; (३) अधिवासी भारतीयोंकी वर्तमान एकाधिक पत्नियोंको बिना पत्नियोंका कानूनी दर्जा दिये, प्रवेश करने दिया जाये; और उन्हें निवास- सम्बन्धी पूर्ण अधिकार प्राप्त हों।

[अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १-१०-१९१३

१. देखिए खण्ड ११, पृष्ठ ११५ और ११७ ।