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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अन्तमें, मैं यह कहना चाहूँगा कि आपका यह कथन, कि “सत्याग्रही तपस्याका मूल्य माँगते हैं, जबरदस्ती ओढ़े हुए कारावासका मुआवजा चाहते है, [उनकी] शहादतकी जड़में रुपया-पैसा है," एक बर्बर दोषारोपण है; साथ ही उन स्त्री-पुरुषोंके प्रति अत्यन्त निष्ठुरतापूर्ण अन्याय-स्वरूप है, जिन्होंने पिछले आन्दोलनके दौरान कष्ट भोगे हैं और जो आगे भी भोगनेको तैयार है। किसको कितना दिया गया है, इसका विवरण कुछ दिन पहले प्रकाशित किया गया था और जिस-किसीकी इच्छा हो वह स्वयं आकर उसका निरीक्षण कर सकता है। सत्याग्रहियोंको उनकी सेवाओंके बदले कभी कोई रकम नहीं दी गई। जो लोग जेल गये थे उनपर आश्रित रहनेवाले लोगोंको निर्वाह-खर्च दिया गया है और वह भी जीवनकी केवल उन आवश्यकताओंकी पूर्तिके लिए जिनके बिना काम नहीं चल सकता। आपके संवाददाताको चाहिए कि वह सूचना देनेवाले लोगोंसे अपन-अपने कथनोंकी पुष्टिके लिए तथ्य जुटाने को कहे। वैसे ईमानदारीके खयालसे आपके संवाददाताको चाहिए तो यह था कि वह इतने विश्वासके साथ और इतने जोरदार ढंगसे ऐसा विवरण प्रकाशित करनेसे पहले तथ्योंकी जाँच कर लेता। और उसके लिए सबसे आसान यह होता कि वह कमसे-कम मेरे पास आकर पूछ ही जाता कि मैं उनको सही मानता हूँ या गलत । उसने यह तो स्वीकार किया है कि उसके किन्हीं भी प्रश्नोंके उत्तर देने में मैंने जरा भी लाग-लपेटसे काम नहीं लिया था।

आपका,
मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]
ट्रान्सवाल लीडर, १-१०-१९१३

{{C|१५१. पत्र: मगनलाल गांधीको}

सितम्बर ३०, १९१३

चि० मगनलाल,

तुम्हारा पत्र मिल गया है। श्रीमती ब्लेयरको अखबार भेज देना।

मैं घरमें जो कमीज पहनता हूँ, उसमें घड़ी रह गई है। ढूंढकर अच्छी तरह रख लेना।

कल मणिलाल, मेढ, और प्रागजीने बहुत प्रयत्न किया, किन्तु गिरफ्तार न हो सके। वे आज फिर फेरी करने निकले हैं। स्त्रियाँ भी आजकलमें रवाना होंगी।

तुम लिखना कि तुम्हें किस तरहकी परेशानी रहती है। शान्ति उत्पात तो नहीं करती?

मोहनदासके आशीर्वाद