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पत्र : 'ट्रान्सवाल लोडर' को

अब तथ्योंपर आइए। आपके द्वारा प्रकाशित विवरणमें कहा गया है : “ट्रान्सवाल-भरके भारतीय दूकानदारोंने आन्दोलनसे अपना सम्बन्ध विच्छेद कर लिया है और श्री गांधीको रुपये-पैसेकी मदद देनेसे भी हाथ खींच लिया है; धनके अभावमें आन्दोलन अवश्य ही असफल हो जायेगा।" परन्तु हकीकत यह है कि रविवारकी' विशाल सभाम जोहानिसबर्गके लगभग सभी भारतीय दूकानदार उपस्थित थे और ट्रान्सवालके सभी प्रमुख नगरोंके भारतीय दूकानदारोंकी ओरसे सभाके उद्देश्योंके समर्थनमें हमारे पास तार आये थे, और जिन नगरोंको अपने प्रतिनिधि भेजनेके लिए मुश्किलसे चौबीस घण्टेकी पूर्व सूचना मिली थी, उन नगरोंके प्रतिनिधि भी उसमें शामिल होने आ गये थे। यदि समाजमें कोई मतभेद होगा भी तो इस बातपर कि सत्याग्रहियोंकी माँगें बहुत कम हैं, न कि इसपर कि वे बहुत अधिक है; क्योंकि मैं स्वीकार करता हूँ कि हमारे बीच ऐसे लोग मौजूद हैं जिनका आग्रह सत्याग्रहको बहुत ही जोर-शोरसे चलानेका है। वे दोषी नहीं ठहराये जा सकते, परन्तु निःसन्देह वे नर्मदलवाले वर्गके प्रतिनिधि नहीं माने जायेंगे। मुझे नहीं मालूम, वे कौन-से प्रभावशाली मुसलमान व्यापारो हैं जिन्होंने आपके संवाददातासे यह कहा कि शिकायतकी लगभग कोई गुंजाइश नहीं है और स्वर्ण-कानन सम्मेलनमें जो लोग शरीक हुए थे वे सत्याग्रहके खिलाफ हैं। आपके संवाददाता यदि चाहें तो खुशीसे आन्दोलनका हार्दिक समर्थन करनेवाले ट्रान्सवालके प्रमुख दूकानदारोंकी नामावली देख सकते हैं। नामावली मेरे पास रखी हुई है। हाँ, यह सही है कि उन सभीने जेल जानेकी ख्वाहिश जाहिर नहीं की है, परन्तु वे रुपये-पैसेकी मदद पहुंचाने के लिए अवश्य तैयार है। आपके द्वारा प्रकाशित विवरणमें की गई गलत-बयानियोंका खण्डन और अधिक विस्तारसे करनेकी जरूरत नहीं है, क्योंकि गुड़का स्वाद तो खानेपर ही मिल सकता है। यह तो समय ही बतलायेगा कि आन्दोलन धनके अभाव या सत्याग्रहियोंकी कमीके कारण ठप होता है या नहीं। परन्तु मैं इतना अवश्य कहूँगा, जैसा मैंने कल आपके संवाददाताको समझानेका प्रयास किया था, कि आन्दोलनको सफलता लाजिमी तौरसे रुपये-पैसेकी सहायतापर निर्भर नहीं किया करती। वास्तवमें, सत्याग्रहके बारेमें मेरा अपना दृष्टिकोण यह है कि जबतक सत्याग्रहको किसी भी प्रकारकी आर्थिक सहायतापर आश्रित रहना पड़ता है तबतक वह अपने शुद्ध रूपमें नहीं आता। वह तो मूलतः एक धार्मिक शक्ति है, पर मैं यह दावा नहीं करता कि सत्याग्रह --जिसमें मैं भी एक विनम्र सहकर्मी हूँ--विशुद्धतम अवस्था प्राप्त कर चुका है। उस अवस्था तक पहुँच जानेपर, वह सार्वजनिक सभाओं, प्रस्तावों या इंग्लैंड और भारत तक से अपीलें करने-जैसे सार्वजनिक प्रदर्शनोंका मुहताज नहीं रहेगा। हमारा आदर्श तो यह है कि सत्य अपनेआपको प्रतिष्ठित करनेके लिए ऐसे साधनोंका मुखापेक्षी न बने। हम इस आदर्श तक पहुँचनकी कोशिश कर रहे है और हमारे हाथमें इतना ही है कि हम यह प्रयत्न करते-करते अपने प्राण चले जाने दें।

१. सितम्बर २८ ।