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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

वैसा तो नहीं है, लेकिन हाँ, कुछ अर्थों में शायद है भी।'

[अंग्रेजीसे]
ट्रान्सवाल लीडर, ३०-९-१९१३

१५०. पत्र : 'ट्रान्सवाल लीडर'को

[जोहानिसबर्ग]
सितम्बर ३०, १९१३

सेवामें

सम्पादक
'ट्रान्सवाल लीडर'

महोदय,

मुझे यकीन है कि आप मुझे सत्याग्रह आन्दोलनके सम्बन्धमें अपने संवाददाता द्वारा की गई कई गलतबयानियोंको ठीक करनेकी अनुमति देंगे। इसमें शक नहीं कि सभी गलतबयानियाँ जानबूझकर नहीं की गई है, लेकिन उनके किये जानेके निमित्त तो निःसन्देह आपके संवाददाता ही हुए हैं। आपने समाचार छापा है कि "भारतीय सत्याग्रह आन्दोलन ठप्प होने जा रहा है।" यदि एक भी सत्याग्रही पर्याप्त लगनके साथ सत्याग्रह चलाता रहा तो यह कथन गलत साबित हुए बिना न रहेगा और मैं भविष्यवाणी कर रहा हूँ कि जबतक संघर्ष करनेके लिए एक भी सत्याग्रही बचा रहेगा, हम जिन माँगोंके लिए आज संघर्ष कर रहे हैं वे ठुकराई नहीं जा सकती और यह उस एक सत्याग्रहीको शक्तिकी बदौलत नहीं, बल्कि इसलिए कि वह जिस सत्यके लिए संघर्ष कर रहा है उस सत्यकी शक्ति अजेय है। आपने अग्रलेखमें यह तो स्वीकार किया है कि हमारी मांगें न्यायपूर्ण हैं, और हमसे केवल यह कहा है कि हम सत्याग्रह पुनः आरम्भ करने के बजाय धैर्यपूर्वक प्रार्थनापत्र भेजते रहनेका तरीका अपनायें। ज्यादा अच्छा रास्ता कौन-सा है, यह तो अपनी-अपनी रायकी बात है। मेरे विचारसे तो जिन मसलोंपर विवाद है वे समाजके लिए बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। और चूंकि प्रार्थना-पत्रोंको पेश करने का रास्ता कारगर सिद्ध नहीं हुआ है, इसलिए सत्याग्रहका मार्ग ही शेष रह जाता है।

१. इसके बाद गांधीजीने बतलाया कि पहले तो इस प्रश्नके बारेमें ऑरेंज फ्री स्टेटकी जनताको पूरी-पूरी बात समझानी चाहिए । गांधीजीने संवाददाताके इस कथनका खण्डन किया कि कई भारतीय व्यापारी सत्याग्रहके विरुद्ध है; देखिए अगला शोर्षक ।

२. यह पत्र ट्रान्सबाल लीडरमें प्रकाशित उस समाचारके प्रतिवादस्वरूप लिखा गया था जिसमें गांधीजीके साथ की गई भेटका विवरण (देखिए पिछला शीर्षक) देते हुए कहा गया था कि कई प्रभावशाली भारतीय दूकानदार सत्याग्रहके विरुद्ध हैं। एल० डब्ल्यू० रिच और एच० कैलेनबैक द्वारा लिखे गये इसी तरहके पत्र इंडियन ओपिनियनके १५-१०-१९१३ के अंकमें इस पत्रके साथ प्रकाशित किये गये थे।