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१४९. भेंट : 'ट्रान्सवाल लीडर' के प्रतिनिधिको

[जोहानिसबर्ग
सितम्बर २९, १९१३]

श्री गांधीने. स्थितिके बारेमें पूरे विस्तारके साथ स्पष्ट चर्चा की। उनका खयाल है कि ट्रान्सवालको समस्त जनता पूर्णतर अधिकारोंके लिए भारतीयोंकी मांगका समर्थन करती है। उन्होंने कहा कि उनकी तो जिस किसीसे भी बात हुई उसने सहानुभूति ही दिखाई।

[संवाददाता :] तब आपके खयालसे संसद देशको भावनाओंका सच्चा प्रतिनिधित्व नहीं करती?

[ गांधीजी :] जी, हाँ; उसमें तो पेशेवर राजनीतिज्ञ लोग [ भरे हुए हैं।

श्री गांधीने कहा कि भारतीय आज भी अपने उद्देश्यके प्रति सदाकी तरह निष्ठावान और दृढ़ हैं। सम्भव है, संख्यामें बहुत न हों, लेकिन उनकी लगन वैसी ही उत्कट बनी हुई है। उन्होंने कहा कि वर्तमान संकट उनकी आत्मशुद्धिके लिए ही आया है। यह पूछा जानेपर कि सत्याग्रहियोंकी संख्या कम क्यों होगी, उन्होंने कहा कि बहुतेरे ऐसे हैं जो ट्रान्सवालकी जेलोंके कष्टोंका अनुभव प्राप्त कर चुके हैं और वे दुबारा जेल नहीं जाना चाहते।

[सं०] कुछ दूकानदार भी तो आपका साथ देनेके लिए आगे नहीं आ रहे हैं?

[गांधीजी :] वे जेल भले ही न जायें, लेकिन रुपये पैसेसे हमारी मदद करेंगे।

[सं०] क्या आपकी आर्थिक स्थिति आज भी उतनी ही अच्छी है जितनी पिछले आन्दोलनके समय थी?

[ गांधीजी :] जी नहीं; आज हमारी आर्थिक स्थिति उतनी अच्छी नहीं है।

उन्होंने आगे कहा कि इस बार ३,००० लोगोंके जेल जानेकी बात नहीं है। अब एक दूसरा ही तरीका अपनाया जायेगा। थोड़े-थोड़े समयके लिए लोगोंको एक बड़ी संख्यामें जेल भेजनके बजाय इस बार सौ या कुछ इतने ही लोग मोर्चा लेंगे और चूंकि लगता है, सरकार अधिकसे-अधिक दण्ड देनेपर उतारू है इसलिए यदि उन सत्याग्रहियोंको तीन या चार बार ही गिरफ्तार किया गया तो भी उनको एक लम्बे असें तक जेलमें रहना पड़ेगा। अन्य प्रान्तोंमें रहनेवाले उनके सहकर्मी उनकी सहायता करेंगे। फ्री स्टेटमें वे केवल एक सैद्धान्तिक अधिकारके लिए संघर्ष कर रहे हैं।

इसपर भेंटकर्ताने कहा : अंगुली पकड़कर पहुंचा पकड़ने के लिए।