[ उन्होंने कहा :] मेरा खयाल है कि हमारी मांगें बहुत ही सीधी-सादी हैं। महत्त्वकी दृष्टिसे सबसे पहली माँग यह है कि तीन पौंडी व्यक्ति-कर हटा दिया जाये। यह कर किसी वक्त गिरमिटिया रह चुकनेवाले सभी भारतीयों, उनकी पत्नियों और उनकी अवस्था प्राप्त सन्तानको चुकाना पड़ता है और इस प्रकार प्रतिवर्ष छः प्राणियोंके परिवारपर यह कर १८ पौण्ड होता है। जैसा कि लॉर्ड ऍटहिलने लार्ड सभामें कहा है, इस करको रद करनेका वचन संसदके पिछले सत्रमें दिया जा चुका था। यह वचन गोखलेको, जब वे दक्षिण आफ्रिका पधारे थे, तब दिया गया था। दूसरा प्रश्न है विवाह-सम्बन्धी कठिनाईका। इस सम्बन्धमें बड़े ऊटपटांग वक्तव्य मेरे देखने में आये हैं। कहा गया है कि हम दक्षिण आफ्रिकाके विवाह-सम्बन्धी कानूनका पूरा आधार ही बदलनेको कोशिश कर रहे हैं और बहुपत्नीक विवाहको कानूनी जामा पहनाना चाहते हैं। हम जो चाहते हैं उसमें और इसमें जमीन आसमानका अन्तर है। हम तो केवल यही मांग रहे है कि सर्ल-निर्णयसे पहले जो स्थिति थी उसीको बहाल किया जाये, अर्थात् हमारी अपनी धार्मिक विधियोंके अनुसार सम्पन्न एकपत्नीक विवाहको कानूनी मान्यता दी जाये। इसका अर्थ दक्षिण आफ्रिकाके विवाह-सम्बन्धी कानूनके आधारमें कोई रद्दोबदल करना हरगिज नहीं है। हाँ, हमने यह माँग अवश्य की है कि यहाँके अधिवासी भारतीयोंकी मौजूदा एकाधिक पत्नियोंको आने दिया जाये, परन्तु हमने उनकी स्थितिको कानुनी मान्यता देनेकी माँग नहीं की है। पहले भी ऐसा किया जाता रहा है, और हम उसे केवल जारी रखनेकी बात कह रहे है। इसका बहुत ही कम भारतीय महिलाओंसे सम्बन्ध है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि दक्षिण आफ्रिकाके कानूनमें बागानके मालिकोंके हितके खयालसे गिरमिटिया भारतीयोंके मामले में बहु-पत्नीक प्रथाको, वास्तवमें, कानूनी मान्यता तक दी गई है। परन्तु हम स्वतन्त्र रूपसे बसे भारतीयोंकी एकाधिक पत्नियोंको वैसी कानूनी मान्यता देनेकी मांग नहीं कर रहे हैं। तीसरी चीज यह है कि दक्षिण आफ्रिकामें जन्मे भारतीयोंका, उनके जन्मस्थानके कारण केपमें प्रवेशका अधिकार बरकरार रहना चाहिए। चौथा प्रश्न फ्री स्टेट-सम्बन्धी समस्याका है। इसका तो निबटारा लगभग हो ही चुका है। हमारा तो कहना है कि नये अधिनियमका यह अर्थ कदापि नहीं है कि फ्री स्टेटमें प्रवेश पानेवाले भारतीयको एक प्रवासीके रूप में भू-सम्पत्ति रखने, फार्म चलाने या व्यापार करनेपर फ्री स्टेट द्वारा लगाये गये प्रतिबन्धोंके सिलसिले में ज्ञापन देना ही पड़ेगा। यदि सरकार भी कानूनकी यही व्याख्या करती है, तो कोई झगड़ा नहीं रह जाता। यदि सरकार उसे स्वीकार कर ले, तो सारी समस्या ही हल हो जाये। (तालियाँ ।)
[प्रस्ताव]
ब्रिटिश भारतीय संघके तत्वावधानमें की गई यह सभा श्री कालिया द्वारा सरकारको लिखे गये पत्रमें उनके द्वारा अख्तियार किये गये रुखकी ताईद करती है
१. कैलेनबैक, एल. डब्ल्यू० रिंच और जोजेफ रायप्पनके भाषणों के बाद, इस सभाने यह प्रस्ताव पास किया, जिसे शायद गांधीजोने तैयार किया था। वह प्रस्ताव कुछ शाब्दिक रहोबदलके साथ १-१०-१९१३ के इंडियन ओपिनियनमें भी प्रकाशित हुआ था।