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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


जिनको गिरमिटकी अवधि पूरी होनेपर तीन पौण्ड कर देना पड़ेगा उनसे कहा जाये कि जबतक कर वापस न लिया जाये, तबतक वे हड़ताल रखें। लॉर्ड ऍम्टहिलने श्री गोखलेकी सहमतिसे लार्ड सभामें घोषणा की थी कि सरकार इसे वापस लेनेका निश्चित वचन दे चुकी है। और यह बात लॉर्ड ग्लैड्स्टनसे भी कही गई थी - इसे देखते हुए गिरमिटिया भारतीयोंको मेरी ऐसी सलाह पूर्णतः उचित जान पड़ती है। मैं अपने व्यक्तिगत अनुभवसे जानता हूँ कि यह कर लोगोंको सबसे अधिक नागवार गुजरा है और मुझे यह व्यक्तिगत रूपसे मालूम है कि वे इस कारण बहुत ही क्षुब्ध हैं। परन्तु उन्होंने इसे लगभग विरक्त भावसे चुपचाप सहन कर लिया है और मैं ऐसा कोई कदम उठाना या सलाह देना पसन्द नहीं करता जिससे उनके मनको शान्ति भंग हो। क्या मैं अब भी, जबकि संघर्ष चल रहा है, जनरल स्मट्ससे प्रार्थना नहीं कर सकता कि वे पेश किये गये मुद्दोंपर और तीन पौंडी करके प्रश्नपर पुनः विचार करें और, उनके विचार चाहे इस पत्रके अनुकूल हों या प्रतिकूल, मैं इस आश्वासनकी आशा करता हूँ कि इस पत्रको धमकीके रूप में कदापि नहीं माना जायेगा।

[आपका,]
मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २९-१०-१९१३

१४७. भाषण : फ्रीडडॉर्पकी सभामें

[जोहानिसबर्ग
सितम्बर २८, १९१३]

श्री गांधीने भाषण आरम्भ करते हुए कहा कि मैं आज ही तीसरे पहर दो सभाओंमें भाषण कर चुका हूँ। उनमें से एक सभामें लगभग पचास भारतीय महिलाएँ ऐसी थीं, जिनपर प्रवासी अधिनियमका प्रभाव पड़ता था। वे सब अपनी उन बहनोंका रास्ता अपनानेका निश्चय कर चुकी है, जो वेरोनिगिंगमें तीन महीनेका सपरिश्रम कारावास काट रही है। (तालियाँ।) उन सभीने, जिनमें से कुछके साथ गोदके बच्चे भी थे, फैसला किया कि वे जेल जीवनकी सभी कठिनाइयाँ बर्दाश्त करेंगी। वे अपने सम्मानकी खातिर कष्ट झेलने के लिए तैयार हैं और सभामें उपस्थित लोगोंको यह सुनकर सन्तोष और शायद आश्चर्य भी होगा कि चेतावनी दिये जाने और जेल-जीवनके कष्ट बढ़ा-चढ़ाकर बतलाये जाने के बावजूद वे महिलाएं अपने निश्चयपर अटल रहीं। चन्द दिनोंमें वे ही वे सम्राट्की सरकारकी जेलोंमें पहुँच जायेंगी। (तालियाँ।)

श्री गांधीने भारतीय समाज द्वारा की गई प्रार्थनाओं और सत्याग्रह पुनः शुरू करनेके कारणोंपर प्रकाश डाला।

१. देखिए “लार्ड सभाकी बहस", पृष्ठ १७४-७५ ।