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पत्र: गृह-सचिवको


स्टेशन मास्टरने भी किसी प्रकारको राहत न देते हुए जो ओछापन दिखाया था, इस शिकायतमें उसका भी उल्लेख है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १-१०-१९१३

१४६. पत्र : गृह-सचिवको

[जोहानिसबर्ग]
सितम्बर २८, १९१३

प्रिय श्री जॉर्जेस,

पता नहीं आपको यह पत्र लिखना उचित है या नहीं। परन्तु चूंकि आप [इस बातके ] इच्छुक रहे हैं कि सत्याग्रहकी पुनरावृत्ति न हो और चूंकि मैंने आपसे बातचीतके दौरान बहुधा कहा है कि सरकारसे छिपाने लायक कोई बात मेरे पास नहीं है, इसलिए मैंने सोचा कि इस समय जो-कुछ हो रहा है उससे आपको भी परिचित करा दूं।

मैंने आपके पिछले पत्रका उत्तर फीनिक्ससे भेजा था'; यदि आपने उसका उत्तर अभीतक दिया न हो और देना चाहते हों, तो कृपया जोहानिसबर्गके पतेपर लिखें, क्योंकि मैं अभी कुछ दिनोंतक तो यहीं रहूँगा।

आन्दोलन तत्परताके साथ शुरू हो चुका है। आप जानते ही हैं कि सोलह सत्याग्रहियोंको, जिनमें चार स्त्रियाँ भी है, तीन महीनेके सपरिश्रम कारावासकी सजा मिल चुकी है। यहाँ भी सत्याग्रही मेरे आनेकी राह देख रहे थे और अब यहाँ कार्रवाई शुरू होने में देर नहीं है।

इतना जरूर कहना चाहता हूँ कि संघर्ष जिन मांगोंको लेकर फिरसे शुरू हआ है वे ऐसी है कि उन्हें सरकार मजेमें स्वीकार कर सकती थी। मैं चाहता हूँ कि इसे भली-भाँति समझ लें कि हम जो कदम आगे उठाने जा रहे है वह बहुत संगीन है। मैं जानता हूँ कि उसमें बड़ा खतरा भी है। मुझे यह भी मालूम है कि एक बार शुरू हो जानेपर फिर आन्दोलनके प्रसारको निर्धारित सीमाओंमें रखना मुश्किल हो सकता है। मैं यह भी जानता हूँ कि इतना बड़ा कदम उठाने की सलाह देकर मैं अपने ऊपर कितनी बड़ी जिम्मेदारी ओढ़ रहा हूँ, लेकिन मैं महसूस कर रहा हूँ कि मैं एक ऐसे कदमको उठाने की सलाह दिये बिना रह भी नहीं सकता जिसे मैं केवल आवश्यक ही नहीं शिक्षाप्रद भी समझता हूँ, और जो अन्तमें भारतीय समाज और सरकार दोनोंके लिए बहुमूल्य सिद्ध होगा। और यह कदम है, जिन लोगोंपर तीन-पौंडी कर लगाया गया है, उनसे मैं कहूँ कि वे मुस्तैदी और दृढ़ताके साथ कर अदा करनेसे बराबर इनकार करें और उसकी गैर-अदायगीके लिए दण्ड भुगतनेको तैयार रहें। और इससे भी कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण यह है कि अभी जो लोग गिरमिटिया हैं और इसी कारण

१. देखिए पत्र : गृह-सचिवको", पृष्ठ १९४-९५ । स्पष्ट है कि जोर्जेसका २७ सितम्बरवाला उत्तर तबतक गांधीजीको नहीं मिला था।

२. देखिए “ पत्र: हरिलाल गांधीको", पृष्ठ १८४ ।