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पत्र: दक्षिण आफ्रिकी रेलवेको


थे वह केवल यूरोपीयोंके लिए था। मैंने कंडक्टरका ध्यान एक ऐसे डब्बेको ओर खींचा जिसपर यूरोपीयोंका लेबिल लगा था। मैंने इस तथ्यकी ओर भी उसका ध्यान दिलाया कि हमारे डब्बेपर कोई लेबिल नहीं लगा था और बताया कि मैं नेटाल लाइनपर ऐसे डब्बोंमें कई बार यात्रा कर चुका हूँ। मैंने उसे यह भी सूचित किया कि डर्बनमें कंडक्टरने मुझे इस डब्बे में बिठाया था ; किन्तु उस नये कंडक्टरने कहा कि मुझे उसके निर्देश मानने होंगे, अन्यथा स्टेशन मास्टरसे उस डब्बेमें, जिसमें मैं था, बैठे रहनेकी अनुमति लेनी होगी। इसपर मैं स्टेशन मास्टरसे मिला; किन्तु उसने कुछ रुखाईके साथ कहा कि मुझे जैसा कंडक्टर कहे वैसा करना चाहिए और यह भी कहा कि कंडक्टर यात्रियों को कोई कारण बताये बिना जितनी बार चाहे जगह बदलने के लिए कह सकता है। मैंने इस मामले में स्टेशन मास्टरसे बहस नहीं की; चुपचाप गया और जिस डब्बेमें बैठा था फिर उसी में जाकर बैठ गया तथा आगे क्या होता है, इसकी प्रतीक्षा करने लगा। इसी बीच मेरे एक मित्रने, जो संयोगसे प्लेटफार्मपर थे, और मुझे जानते थे कि मैं कौन हूँ, यह बात चुपचाप कंडक्टरको बता दी। बादमें कंडक्टरने मुझसे कहा कि मैंने आपसे दूसरी जगह जानेको केवल इसलिए कहा था कि नियम यही है और उसका पालन होना चाहिए। मैंने तब कंडक्टरसे कहा कि जब उसे यह मालूम हो गया है कि मैं कौन हूँ, तब भी उसका कर्तव्य है कि नियमोंको न माननेके जुर्म में वह मुझे गिरफ्तार करा दे। किन्तु उसने ऐसा नहीं किया। मुझे उस समय प्लेटफार्मपर उपस्थित भारतीयोंने बताया कि ऐसी कठिनाइयाँ भारतीय यात्रियोंके सामने बहुधा आती रहती है। मैं नहीं जानता कि कंडक्टरने जो-कुछ मुझसे कहा, उसमें कहाँतक सचाई है। मैं तो यही आशा कर सकता हूँ कि उसने प्रशासनके निर्देशोंको गलत समझा है, क्योंकि मेरी विनम्र सम्मतिमें भले ही कोई तीसरे दर्जे में ही सफर क्यों न कर रहा हो, यदि उसे बिना परेशानी, और जब-तब यह जानकारी कराये बिना कि सर्वोत्तम डब्बे तो सदा यूरोपीयोंके लिए सुरक्षित होते हैं, यात्रा न करने दी जाये तो यह बहुत बेजा बात है।

मुझे आशा है कि आप कृपाकर इस मामले में जाँच करेंगे और जो कुछ आवश्यक समझेंगे, करेंगे। मैं अनुभव करता हूँ कि उच्च अधिकारियों, जैसे स्टेशन मास्टरों, से यह कह दिया जाना चाहिए कि वे अपना उत्तरदायित्व समझें और यात्रियोंसे, वे यूरोपीय न भी हों तो भी, शिष्टताका व्यवहार करें। मैं यह आवश्यक नहीं समझता कि स्टेशन मास्टरसे शिष्ट-व्यवहारकी अपेक्षा करनेसे पहले मुझे अपना परिचय देना जरूरी था।

[आपका,
मो० क० गांधी]

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ८-१०-१९१३