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पत्र: गृह-सचिवको


अधिवासी हैं। इससे सरकारको जिस कार्य के प्रति उदारता बरतनी है वह भी सीमित हो जाता है और वह यह भी जान सकती है कि उसे ऐसी कितनी स्त्रियोंको प्रवेशकी अनुमति देनी होगी। यह सब किस प्रकार किया जा सकता है, मैं इसकी एक योजना पहले ही प्रस्तुत कर चुका हूँ।

मेरे विनम्र मतसे, १० अगस्त, १९११ के उस पत्रमें, जिसका उल्लेख आपने अपने पत्रमें किया है, इसकी यही व्याख्या की गई है। ब्रिटिश भारतीय संघने बहुपत्नीक विवाहका प्रश्न उठाया था और उसके उत्तरमें आश्वासन देते हुए उक्त पत्र प्राप्त हुआ था। शायद आप जानते ही हैं कि प्रवासी-अधिकारीने एकाधिक पत्नियोंको वस्तुतः प्रवेशकी अनुमति दी है, और बहुपत्नीक विवाह ट्रान्सवालके पंजीयन प्रमाणपत्रोंपर दर्ज भी किये गये हैं।

चूंकि “ एकपत्नीक विवाह" के अर्थके सम्बन्धमें सन्देह उत्पन्न हुए हैं, इसलिए मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूँ कि भारतीय समाज इसका अर्थ यह करता है : “एकपत्नीक विवाह" वह है जिसमें एक पुरुषका विवाह केवल एक स्त्रीसे होता है, फिर चाहे विवाह किसी भी धर्मके अन्तर्गत हो और चाहे उस धर्म में किसी परिस्थिति-विशेष में बहुपत्नीक विवाहकी अनुमति हो या न हो।

मैं देखता हूँ कि आपके पत्रके दूसरे अनुच्छेदसे यह भाव झलकता जान पड़ता है कि आपके पिछले तारका मैने जो उत्तर दिया था उसमें उन अन्य मुद्दोंकी मैने कोई चर्चा नहीं की जिनका तारमें उल्लेख था, यद्यपि वैसा किया जा सकता था। मैंने जानबूझकर उन मुद्दोंकी चर्चा नहीं की, क्योंकि मैने अनुभव किया कि उसकी कोई गुंजाइश ही नहीं छोड़ी गई है। किन्तु यदि जनरल स्मट्स अन्य मुद्दोंपर विचार करनेके लिए अब भी तैयार हों तो मैं निश्चय ही उनके सम्बन्धमें फिर निवेदन करनेको तैयार हूँ। मैं यह अनुभव किये बिना नहीं रह सकता कि यह मतभेद दुर्भाग्यवश ऐसे मुद्दोंको लेकर उत्पन्न हुआ है जो भारतीय समाजके लिए तो बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं, किन्तु सरकारके लिए या संघकी प्रधान आबादीके लिए जिनका कोई महत्त्व नहीं है।

सरकारके काम में बाधा डालनेकी मेरी कोई इच्छा नहीं है और मैं अपने देशवासियोंके प्रति अपने कर्तव्यका खयाल रखते हुए यथासम्भव सरकारकी सेवा करनेके लिए भी अत्यन्त उत्सुक हूँ; कृपया मुझे सदा ऐसा ही व्यक्ति समझें।

[आपका,]
मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २९-१०-१९१३

१. २७ सितम्बरको इस पत्रकी पहुँच देते हुए श्री जोजैसने लिखा था: "मैंने आपका पत्र मन्त्री महोदयके सम्मुख प्रस्तुत कर दिया और उन्होंने इस मामलेपर पूरा विचार करनेके बाद मुझे यह उत्तर देनेके लिए कहा है कि वे पिछले महीनेकी १९ तारीखको आपको लिखे गये मेरे निजी पत्रके खण्ड चारमें उल्लिखित ढंगका विधेयक संसदके अगले अधिवेशनमें प्रस्तुत करनेके विषयमें कोई आश्वासन देने में असमर्थ है।"