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पत्र:'नेटाल मक्युरी' को


एक पुरुषने केवल एक ही स्त्रीसे विवाह किया है, एक-पत्नीक विवाह हैं। यदि इस वाक्यांशका अर्थ कुछ और है, तो सरकारने सिनेट, साम्राज्य सरकार और भारत सरकार तथा भारतीय समाज सबको धोखा दिया है। इस बातसे इनकार नहीं किया जा सकता कि यह विवाहका प्रश्न हमारे लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण प्रश्न है। मुझे विश्वास है कि दक्षिण आफ्रिकाके यूरोपीय, हमें अपनी स्त्रियोंका सम्मान भी उसी प्रकार चावसे सुरक्षित रखने देंगे जिस प्रकार वे अपनी स्त्रियोंके सम्मानको सुरक्षित रखते हैं।

तीन पौंडी व्यक्ति-करके बारे में मैं देखता हूँ, आपका संवाददाता बहुत सोच-विचार कर ऐसा नहीं कहता कि यह एक नया मुद्दा है। उसे सन् १९११ के पत्र-व्यव-हारमें वणित आरक्षण-धारापर एक निगाह-भर डालनी है, और फिर उसे मालूम हो जायेगा कि इसे नया मुद्दा नहीं माना जा सकता। यह नया इसी अर्थमे है कि अभी हालकी बातचीतमें सम्मिलित नहीं किया गया था। यह ठीक तरहसे किया भी नहीं जा सकता था, क्योंकि बातचीत केवल नये अधिनियमके सम्बन्धमें हुई थी। यदि इस बातचीतके आधारपर कोई समझौता हुआ होता तो समाज प्रार्थनापत्र आदिके द्वारा इस करको हटानेका अनुरोध करना जारी रखता, किन्तु चूंकि बातचीत असफल हो गई,इसलिए समाजके सम्मुख सामान्य मानवीयताके इस मामलेको संघर्ष में सम्मिलित करनेका द्वार खुला हुआ था। लॉर्ड ऍस्टहिलने कहा है कि संघ-सरकारने श्री गोखलेको यह कर हटानेका निश्चित वचन दिया था। यदि सरकार अपने वचनका पालन करना चाहती है, तो उसे केवल ऐसा कहना ही काफी है और उस मुद्देके सम्बन्धमें कोई संघर्ष नहीं किया जायेगा। यदि वह इसका पालन नहीं करना चाहती है तो भारतीय तभी एक स्वतन्त्र और आत्म-सम्मानी समाजके साथ रहनके अधिकारी होंगे, जब उनमें इतनी शालीनता और नैतिक बल हो कि वे अपने एक प्रमुख देशवासीको दिया गया वचन पूरा करवानेके लिए और अपने गरीब और असहाय देशवासियोंको उस भारसे, जो उनपर डालना कदापि उचित न था, मुक्त करवाने के लिए कारावास या उससे भी अधिक कष्ट सहन कर सकें। मुझे लगता है कि उनपर इस भारको लादनेके पापमें दक्षिण आफ्रिकाकी स्वतन्त्र भारतीय आबादीका भी उतना ही हाथ है जितना यूरोपीयोंका है।

और अन्त में यह कि आपके संवाददाताने सलाह दी है कि हमें जो-कुछ दिया गया है उसे हम कृतज्ञतापूर्वक स्वीकार कर लें और जो चीज देनेसे इनकार किया गया है उसे महत्त्वहीन मान लें और तब हम चाहें तो अपनी बाकी शिकायतों को प्रार्थनापत्रों आदिके द्वारा दूर करवानेके लिए जोर दे सकते हैं। उसने यह भी कहा है कि तब हमें वतनी भूमि अधिनियम-जैसे किसी विशेष कानूनका वरदान मिल सकता है और उसके द्वारा हमारे लिए एक क्षेत्र सुरक्षित किया जा सकता है जिसमें हम जमीन आदि खरीद सकते हैं। इस सबसे मुझे ईसपके न्याय-प्रिय भेड़ियेकी कहानी याद आ जाती है। संवाददाता मुझे इस तुलनाके लिए क्षमा करे। हम इधर वर्षोंसे प्रार्थनापत्र देते आ रहे हैं, किन्तु वे सब व्यर्थ गये हैं। हमसे हमारे अधिकार एक-एक कर छिनते चले गये हैं। और एक भारतीय रक्षित क्षेत्रका अर्थ यह है कि हमें इस समय नेटाल और केपमें जमीनें रखने और खरीदनेका जो महत्त्वपूर्ण अधिकार प्राप्त है और ट्रान्सवालमें जमीनके स्वामित्वका जो अधिकार परिवर्तित रूपमें मिला हुआ है उसे हम त्याग दें और

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