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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


कानून में प्रजातीय प्रतिबन्धकी कठिनाई है। जनरल स्मट्सके पिछले तारसे इस कथनकी पुष्टि होती है कि उक्त कठिनाई दूर हो गई है, किन्तु वस्तुतः वह दूर नहीं हुई है। आवश्यकता इस बातकी है कि जिस प्रकार भूतपूर्व गिरमिटियोंके अधिकारके बारेमें उठाये गये मुद्दे के बारेमें स्वीकार किया गया था उसी प्रकार यहाँ भी यह स्वीकार किया जाये कि नये अधिनियमके अनुसार फ्री स्टेटमें इसके अन्तर्गत प्रवेश करने वाले किसी भी भारतीयको कानूनी तौरपर ऐसा ज्ञापन देना आवश्यक नहीं है जो किसी अन्य प्रवासीके लिए आवश्यक न हो। यह कहना कि ऐसी घोषणा भारतीयोंको संघमें प्रवेश करनेपर ही करनी होगी, बिल्कुल अवान्तर है। मुद्दा यह है कि, केवल प्रवासकी हदतक जिन शर्तोपर यूरोपीय प्रवेश कर सकते हैं उन्हीं शर्तोंपर भारतीयोंको भी प्रवेश मिलना चाहिए। प्रशासनिक भेदभाव तो निःसन्देह रहेगा किन्तु उससे प्रवासियोंकी संख्याका नियमन होगा, प्रवेशके कानूनी तरीकेका नहीं। इस मामलेका स्वरूप देखते हुए यह मुद्दा कुछ-कुछ प्राविधिक है। अभीतक यह संघर्ष इस बातको ध्यानमें रखकर चलाया जा रहा है कि समानताके सिद्धान्तपर आधारित ब्रिटिश संविधानमें कोई बुनियादी अन्तर न हो। मेरे देशवासियोंके चार वर्षतक कष्ट सहन करनेपर सन १९१०में भारतीय पक्षको शाब्दिक रूपमें स्वीकार कर लिया गया था। किन्तु उसकी भावना इस नये अधिनियममें भी नहीं आ पाई है, क्योंकि उसमें फ्री स्टेट-सम्बन्धी घारा अस्पष्ट रखी गई है।

दूसरी कठिनाई विवाहके सवालसे सम्बन्धित है; वह भी दूर नहीं की गई है। आपके संवाददाताने कहा है कि मैंने बहु-पत्नीक विवाहको कानूनी मान्यता देनेकी मांग की है, और इस प्रकार मैं देशके विवाह-सम्बन्धी उस कानूनको उलट देना चाहता हूँ जो ईसाई सिद्धान्तपर आधारित है। मेरे और सरकारके बीच हुए पत्र-व्यवहारपर', जो१३ सितम्बरके 'इंडियन ओपिनियन' में प्रकाशित किया गया है, एक निगाह डालनेसे यह प्रकट हो जायेगा कि मैने ऐसी कोई मांग नहीं की है। मैंने केवल यही कहा है कि नये कानून में भारतीयोंके दक्षिण आफ्रिकामें सम्पन्न विवाह उसी प्रकार वैध मान लिये जायें जिस प्रकार भारत में सम्पन्न विवाह माने जायेंगे। मैंने नये अधिनियममें विवाह-सम्बन्धी धाराकी शब्दावलीके दोषको सुधारनेका सुझाव दिया था और ऐसा करने के दो तरीके बताये थे -- अर्थात् या तो नये अधिनियममें थोड़ा संशोधन कर दिया जाये या विवाहोंके एक-पत्नीक रूपमें किसी तरहका फेरफार किये बिना संघके विवाह-सम्बन्धी कानूनों में वैसा ही परिवर्तन कर दिया जाये। प्रिटोरियाके संवाददाताने “एक-पत्नीक विवाह" के अर्थका प्रश्न उठाया है। इस प्रश्नका निबटारा सर्वोच्च न्यायालय जल्दी ही कर देगा। यदि इस वाक्यांशका अर्थ वह नहीं हुआ जो विवाह-सम्बन्धी धाराको स्वीकार करते समय अभीष्ट था, तो इसमें दोषी सरकार ही होगी। प्रश्न उसीने उठाया है, भारतीय समाजने नहीं। सामान्य व्यक्तिकी निगाहमें ऐसे लाखों भारतीय विवाह सम्बन्ध, जिनमे

१. इसमें अन्य पत्रोंके साथ-साथ ये पत्र भी सम्मिलित थे : २८ जूनको गृह-मंत्रीके निजी सचिवको लिखा गया पत्र, २ जुलाई और २४ अगस्तको गृह-सचिवको लिखे गये पत्र और ३ सितम्बरको सहायक गृह-सचिवको भेजा गया पत्र । ये पत्र तिथिकमसे यथास्थान दिये गये हैं।