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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


सकते हैं और संघर्ष में मदद कर सकते हैं। सबसे सीधा रास्ता तो फेरीवालोंके लिए है। जो लोग फेरीका ही वन्धा करते हैं वे और वे लोग भी जिनका यह पेशा नहीं है-ये सब बिना परवाना फेरी शुरू कर सकते हैं। इसमें सजा भी कम होती है। और मालके नीलाम होनका भय भी नहीं है। इसमें जरूरी लगे तो विश्राम भी लिया जा सकता है। इस प्रकार यह हलचल गाँव-गाँवमें छिड़ जाये तो हम एक बड़ा भारी संघर्ष चला सकेंगे। सारे दक्षिण आफ्रिकामें अशान्ति मच जायेगी और राज्याधिकारियोंका ध्यान पूर्ण रूपसे इसकी ओर खिंच सकेगा। जिनके पास परवाने है वे भी ऐसा कर सकते हैं। पुलिस बार-बार परवाना देखना चाहती है। हमारे पास परवाना है पर हम न बतायें तो हमें गिरफ्तार करना उसके लिए अनिवार्य हो जाता है। दूकानदार और उनके नौकर भी यही रास्ता अपनाकर गिरफ्तार हो सकते हैं। इस प्रकार विचार करें तो हमें प्रतीत होता है कि यह मार्ग बहुत ही सरल और सीधा है। इसमें कष्ट भी कम हैं। इसमें पहल हमारे ही हाथों रहती है और जब चाहे आराम भी लिया जा सकता है। फेरीवालों और दूकानदारोंको इतना याद रखना चाहिए कि इस संघर्ष में सबसे बड़ा स्वार्थ उन्हींका है। व्यापारपर ही सरकारकी और गोरे लोगोंकी अधिकसे-अधिक कड़ी नजर है। यदि हम व्यापार न करें तो हमारे प्रति इतना ईर्षा-द्वेष न रहे। पर इस देशमें व्यापार तो हमारा जीवन-आधार ही है। और यह तो स्मरण रखनेकी बात है कि ज्यों-ज्यों हमारा मान बढ़ता है, वैसे-वैसे हमारे दुःख कम होते हैं। अतः व्यापारियोंको जो यह बड़ा और सरल अवसर हाथ लगा है। उसका वे लाभ उठायेंगे, मेरा यह विश्वास है। यह बतलानेकी आवश्यकता ही नहीं है कि यह संघर्ष तो अकेला एक भारतीय भी अपने गाँवमें छेड़ सकता है। ऐसा एकाघ शूरवीर हो तो वह जेल जाते समय अपना नाम हमें लिख भेजे। जो लोग सीमा पारकर गिरफ्तार होते हैं उन्हें याद रखना चाहिए कि ऐसा करनेसे उन्हें अपने हक नहीं मिल पायेंगे। सत्याग्रहका संघर्ष व्यक्तिगत हकोंके लिए नहीं हो रहा है। व्यक्तिगत अधिकारोंका तो सत्याग्रहके साथ सदासे बैर रहा है। स्वार्थ और सत्याग्रह दोनों एक साथ नहीं चल सकते।

और सहायता कैसे दी जा सकती है?

हम ऊपर देख चुके है कि इस संघर्ष में सर्वोत्तम मदद तो जेल जाकर ही पहुँचाई जा सकती है। पर हम जानते हैं कि सारे भारतीयोंमें जेल जानेकी शक्ति नहीं है। ऐसे लोग क्या करें, इसका विचार भी हमें करना चाहिए। इस सम्बन्धमें हमें जो विचार सूझते हैं उन्हें नीचे दिया जा रहा है।

१. जो लोग जेल जाते हैं, उनके धन्धे और कुटुम्बियोंका ध्यान रखकर पीछे रहे हुए लोगोंके भरण-पोषणकी व्यवस्था की जा सकती है।

२. इस बार हम भारतसे भी पैसेकी मांग नहीं करेंगे और अब तो पैसा भी हमारे पास थोड़ा ही बचा है, अत: सत्याग्रह फंडमें धनकी मददकी जा सकती है।

३. जो लोग पैसा नहीं दे सकते वे अनाज आदि दे सकते हैं।

४. सभी प्रान्तोंमें गाँव-गाँवमें सभाएं होनी चाहिए और उनमें भी श्री काछलियाके पत्रको मान्यता देनेवाले प्रस्ताव पास करना चाहिए और उन प्रस्तावोंको तार