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१३३. इसे कैसे किया जाये?

चूंकि इस बार संघके सभी प्रान्तोंमें सत्याग्रह चलाया जायेगा, इसलिए वह अपेक्षाकृत सरल होगा; यहाँ बात कष्टोंके कम होनेकी नहीं है। सम्भव है कष्ट पहले से भी अधिक हों, किन्तु गिरफ्तारी पहलेसे अधिक आसानीके साथ हो सकेगी। अभी तक सत्याग्रही ट्रान्सवालको सीमा पार करके गिरफ्तार होते थे। वर्तमान संघर्ष भी इसी तरह शुरू हुआ है। यह तो साफ है कि सीमा पार करके प्रतिरोध प्रकट करने के तरीकेका यह अर्थ नहीं है कि हम प्रान्तीय सीमाओंको तोड़नेकी माँग करते है। बल्कि हम तो संघर्षका कारण दूर होते ही विभिन्न प्रान्तोंकी सीमाएँ पार कर चुकने के बाद भी अपने-अपने अधिवासके प्रान्तोंमें लौट जायेंगे। सत्याग्रही अपने निजी तथा व्यक्तिगत अधिकारोंके लिए नहीं लड़ रहे हैं -- लड़ ही नहीं सकते।

परन्तु सीमा पार करना काफी खर्चीला पड़ता है। जो लोग इस आन्दोलनमें सक्रिय भाग लेना चाहे वे शान्ति एवं शालीनताके साथ बिला-परवाना फेरी लगाकर या व्यापार करके, और यदि परवाना हो भी तो उसे न दिखाकर गिरफ्तार हो सकते हैं। उन्हें हर बार पुलिस या अदालतोंको सूचित कर देना चाहिए कि उनका इरादा इस प्रकार कानून तोड़नेका नहीं है, परन्तु जबतक सरकारसे कोई समझौता नहीं हो जाता तबतक वे देशके उन कानूनोंका पालन कराने में अधिकारियोंकी सहायता नही करेंगे जिनका कोई नैतिक या स्वाभाविक आधार न होकर केवल कृत्रिम आधार है। संघर्ष कोई एक दिनमें समाप्त होनेवाला तो है नहीं। प्रत्येक सत्याग्रही स्वयं सोच सकता है कि उसके लिए किस तरह गिरफ्तार होना सर्वोत्तम रहेगा। अगर हममें अपने तथा अपने देशके सम्मानकी खातिर कष्ट झेलनेकी दृढ़ इच्छा होगी तो समय और अनुभव हमें सही रास्ता भी दिखा देंगे।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २०-९-१९१३

१३४. संघर्ष कैसे किया जाये?

यह तीसरी लड़ाई दक्षिण आफ्रिका-भरमें छिड़ेगी इसलिए हमारा ख्याल है कि इसमें जेल जाना एक सहज-सी बात बन जायेगी। पर इसका मतलब यह नहीं कि जेलके कष्ट इस बार कम होंगे। वे तो, हो सकता है, बढ़ भी जायें। किन्तु जेल जानके मार्ग पहलेकी तरह मुश्किल नहीं होंगे। आजतक तो यह था कि सब लोग ट्रान्सवालमें प्रवेश करके ही जेल जाते थे परन्तु इस बार ऐसा करनेकी आवश्यकता नहीं है। [अब तो] प्रत्येक गांव और प्रत्येक प्रान्तमें यदि थोड़े बहुत भारतीय भी संघर्षके प्रति विवेकपूर्वक ध्यान दें तो वे सब इसमें कुछ-न-कुछ हाथ बँटा ही