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भी काछलियाका पत्र


पाया है। प्रजातिगत प्रतिबन्धोंकी समाप्ति सन् १९१० से ही सभी पक्षोंका सम्मिलित उद्देश्य रहा है। सच तो यह है कि संघ सरकारने इस कानूनका बचाव' ही यह कह कर किया कि इसमें कोई प्रजातिगत प्रतिबन्ध नहीं है, और साम्राज्य सरकारने भी इसपर अपनी स्वीकृति यही मानकर दी थी। और फिर, इस मामले में इस त्रुटिके दूर कर दिये जानेका अर्थ हर मामलेमें प्रजातिगत समानताकी स्थापना भी नहीं है। प्रजातिगत प्रतिबन्धोंको दूर करनेका मतलब सिर्फ उस स्थितिपर वापस लौट जाना है जो १९०६ में थी। इसमें प्रवासको दृष्टिसे कानूनमें प्रजातिगत समानताका उल्लेख किया गया है। इस समानताके स्वीकार कर लिये जानेपर भी- और देर-सबेर उसे स्वीकार करना ही पड़ेगा -सभी प्रान्तोंमें अन्य अनेक कानूनोंकी हद तक प्रजातिगत असमानता रहेगी। लॉर्ड ऍम्टहिलने स्पष्ट रूपसे दिखा दिया है कि इस कानूनमें प्रजातिगत असमानता मौजूद है, यद्यपि सरकारने बार-बार इस तथ्यका जोरदार प्रतिवाद किया है। यह कानून भारतीय प्रवासियोंको एक अनावश्यक और अपमानजनक ज्ञापनके लिए मजबूर करता है, किन्तु यूरोपीय प्रवासियोंको इसपर मजबूर नहीं करता। यह ज्ञापन उन कानूनी निर्योग्यताओंकी स्वीकृति-मात्र है जो फ्री स्टेटके भारतीयोंपर थोपी गई हैं। किन्तु, जैसा कि सरकार स्वयं मानती है, इस स्वीकृतिके बिना भी ये निर्योग्यताएँ बनी ही रहेंगी। इस प्रजातिगत प्रतिबन्धको कायम रखनेका मुख्य कारण संघ-संसदके फ्री स्टेटवासी सदस्योंकी अविवेकपूर्ण जिद ही है। सरकार अपने इन समर्थकोंको नाराज नहीं करना चाहती। अन्यथा, प्रजातिगत प्रतिबन्धके हटनेसे सरकारका कुछ बनता- बिगड़ता नहीं है, और न इससे फ्री स्टेटकी आबादी में एक भी भारतीयकी वृद्धि होनेकी आशंका ही है। सच पूछा जाये तो प्रजातिगत प्रतिबन्धकी समाप्ति वर्तमान अधिकारोंका ही एक अंग है। इसके अन्य ऐसे अधिकारोंसे अलग माने जानेका कारण यह है कि १९११ से पूर्व संघर्ष केवल प्रजातिगत भेदभावके सवालपर केन्द्रित रहा।

नये कानूनमें जिन मौजूदा अधिकारोंपर प्रहार किया है, उनमें से कुछ ये हैं : दक्षिण आफ्रिका में उत्पन्न भारतीयोंका उस केप कानूनके अन्तर्गत, जो अब रद कर दिया गया है, केवल अपने जन्मके आधारपर केपमें प्रवेश करनेका अधिकार; दक्षिण आफ्रिकामें रहनेवाले भारतीयोंकी गैर-ईसाई विधिसे विवाहित पत्नियोंका कानूनी पत्नियाँ माने जानेका अधिकार, जो पहले उन्हें प्राप्त था या माना जाता था कि उन्हें प्राप्त है; नेटालवासी भारतीयोंका, चाहे जितने समय तक नेटालसे बाहर रहने और यह प्रमाणित कर देनेपर कि उनके पास जो अधिवास प्रमाणपत्र है उसके वे प्रामाणिक मालिक हैं, पुनः वहाँ लौट आनेका अधिकार । हम यहाँ उन छोटे-मोटे मौजूदा अघिकारोंकी बात नहीं कर रहे हैं, जो कानून द्वारा छीने गये हों या छीने जा सकते हों।

तीन पौंडी कर अनेक दृष्टिकोणोंसे सबसे अधिक व्यथा पहुंचानेवाली चीज है। यह जिस वर्गपर लादा गया है वह एक अत्यन्त असहाय वर्ग है, और जब श्री गोखले पिछले साल दक्षिण आफ्रिका आये थे उस समय सभी क्षेत्रोंसे इस करकी निन्दा की गई थी; और लॉर्ड ऍम्टहिलके दावेके अनुसार, दक्षिण आफ्रिकाके मन्त्रियोंने श्री गोखलेसे निश्चित वादा किया था कि तीन पौंडी कर उठा दिया जायेगा और फिर उन लोगोंने गवर्नर-जनरलसे यह कहा भी था कि हमने श्री गोखलेसे