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१३२. श्री काछलियाका पत्र'

जो वापस नहीं लिया जा सकता वह कदम उठाया जा चुका है। रायटरकी शानदार समाचार-एजेंसी द्वारा ब्रिटिश संसारको मालूम हो गया है कि दक्षिण आफ्रिकाके मुठ्ठी-भर भारतीयोंने सत्याग्रह-संघर्षकी घोषणा कर दी है। अर्थात्, एक नगण्य अल्पसंख्यक जन-समुदाय एक शक्तिमान सरकार और ऐसी यूरोपीय आबादीके सामने जा डटा है, जिसकी तादाद उसकी तुलनामें बहुत अधिक है और जिसे इस उपमहाद्वीपमें ऐसी सुविधाएँ प्राप्त हैं जो भारतीयोंको शायद अभी पीढ़ियों तक प्राप्त नहीं हो सकेंगी। दरअसल, इस बारका सत्याग्रह संघर्ष सिर्फ दक्षिण आफ्रिकाकी सरकार और यूरोपीयोंके खिलाफ ही नहीं, साम्राज्य-सरकारके खिलाफ भी है। लॉर्ड ऍम्टहिलने लॉर्ड सभामें दिये गये अपने महत्वपूर्ण भाषणमें यह स्पष्ट कर दिया है कि यदि साम्राज्य- सरकारने अपने कर्तव्यका पालन किया होता तो [दक्षिण आफ्रिकामें] कानून बनानेका ढंग कुछ और ही होता; और वह तटस्थ रहती तो भी शायद प्रवासी अधिनियम पास न हुआ होता। इसलिए जबतक हम सत्याग्रह द्वारा उसकी आँखें खोल नहीं देते और जबतक उसे स्पष्ट रूपसे यह दिखाई नहीं देने लगता कि उसने अपने न्यासके प्रति अक्षम्य उपेक्षाका कैसा अनुचित भाव अपना रखा है तबतक हम उससे किसी सहायताकी आशा नहीं कर सकते।

श्री काछलियाने इसे अच्छी तरह स्पष्ट कर दिया है कि इस जबर्दस्त और भयानक कदमके उठानेकी जरूरत क्यों पड़ी। यह एक ऐसा कदम है जिसका अर्थ हमारे सैकड़ों देशबन्धुओंका विनाश हो सकता है। उन्होंने स्पष्ट शब्दोंमें समाजकी मांगे बता दी हैं। उनकी मांगे ये हैं : (१) प्रवासी कानूनसे प्रजातिगत भेदभावको दूर किया जाये; (२) इस कानूनके पूर्व जो अधिकार [ भारतीयोंको प्राप्त थे उनको सुरक्षित रखा जाये; (३) सम्पूर्ण संघमें भारतीयोंसे सम्बन्धित जितने भी कानून है, उनके प्रशासन में न्याय एवं उदारता बरती जाये; (४) तीन पौंडी कर उठा दिया जाये; और अन्त में, (५) सरकारकी भारतीयोंसे सम्बन्धित सारी कार्रवाई में जो एक विरोधी भावना दिखाई पड़ती है, उसके बदले इस समाजके प्रति सद्भावनापूर्ण रुख अपनाया जाये। ऊपर मैने लॉर्ड ऍम्टहिलके जिस भाषणका उल्लेख किया है, उसमें उन्होंने भी ये ही माँगें पेश की थीं।

अब हम यथासाध्य संक्षेपमें इनमें से हरएक मुद्दे को देखें। 'नेटाल मयुरी' ने अपनी सम्पादकीय टिप्पणीमें, जो अन्य बातोंमें प्रशंसनीय है, प्रजातिगत प्रतिबन्धके बारेमें एतराज करनेपर नाराजी प्रकट की है। आम तौरपर हमारे इस सहयोगीकी जानकारी प्रामाणिक हुआ करती है, किन्तु हमें ऐसा जान पड़ता है कि यह टिप्पणी किसी ऐसे सज्जन द्वारा लिखी गई है जिसे अभी इस विषयका पूरा ज्ञान नहीं हो

१. देखिए “पत्र : गृह-सचिवको", पृष्ठ १७७-१८० ।