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पत्र: मणिलाल गांधीको


मैं गंगा भाभीके निर्वाहकी व्यवस्था करनेकी कोशिश कर रहा हूँ। अभी तो मेरा वहाँकी बात सोचना बेकार साबित हो गया है।

बापूके आशीर्वाद

[पुनश्चः]

मैं चाहता हूँ कि तुम जो भी कदम उठाओ मेरा या मेरे विचारोंका खयाल किये बिना उठाओ।

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति (एस० एन० ९५४०) की फोटो-नकलसे ।

१३१. पत्र: मणिलाल गांधीको

[डर्बन]
गुरुवार, [सितम्बर १८, १९१३]'

चि० मणिलाल,

तुम्हारे पत्र आये है। आज भी मुझे लिखने का विशेष अवकाश नहीं है। बा और दूसरे लोग फोक्सरस्ट में गिरफ्तार हो गये हैं। कल अदालतमें पेश होनेवाले थे। क्या हुआ इस बातको जानने के लिए मैं तारका रास्ता देख रहा हूँ। मैं तुम्हें उसकी खबर देना चाहता था लेकिन मिली ही नहीं। तुम्हारी निराशा जितनी बढ़ेगी मै उतना ज्यादा दुःखी हो जाऊँगा। मैने तुम्हें जो वचन दिया है उससे मैं हटा नहीं हूँ। मैंने कोई बड़ा फर्क नहीं किया है। मैं अपनी आत्माको निविकार बनानेके प्रयत्नोंसे दुःखी नहीं हो सकता। व्रतोंसे मुझे कोई कष्ट नहीं होता; उससे मुझे सुख ही होता है। इसमें तुम्हारा चिन्तित होना अज्ञानका सूचक है। दुःख तो मुझे तुम्हारे दुर्वर्तनसे ही हो सकता है। मेरा सुख-दुःख तुम्हारे आचारपर निर्भर है। मैं क्या कर रहा हूँ इसका विचार करते रह कर तुम मेरा दुःख दूर नहीं कर सकते। तुम्हें खुद क्या करना चाहिए इसका विचार करो तो तुम मुझे सुखी कर सकोगे ।

बापूके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू. १०७) से। सौजन्य : सुशीलाबहन गांधी।

१.पत्रमें उल्लिखित वा की गिरफ्तारी मंगलवार सितम्बर १६ को हुई थी।

२. मुकदमा सितम्बर २३ को चला ।