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१३०. पत्र: हरिलाल गांधीको

[डर्बन]
भाद्रपद कृष्ण ३, [सितम्बर १८, १९१३]

चि० हरिलाल,

तुमने पत्र लिखते रहनके अपने वचनका पालन नहीं किया। एसा वचन तुमन एकाधिक बार दिया है और उसे हर बार तोड़ा है।

तुम्हारी तबीयत बिगड़नेकी खबर सुनकर बहुत दुःख हुआ। मुझे इसका डर था। मैंने तुम्हें इसकी चेतावनी भी दी थी। तुम मेरी अनुमति लेकर गये किन्तु यह तो तुम जानते ही हो कि मेरी इच्छा तुम्हें जाने देनेकी नहीं थी। आज भी तुम्हारा रहन-सहन या तुम्हारे विचार मुझे अच्छे नहीं लगते। मुझे तो लगता है कि तुम्हारी शिक्षा उल्टी है। तुमने चंचीका अहित किया है और बच्चोंका भी अहित कर रहे हो; किन्तु मैं स्नेहपूर्वक तुम्हें अपना मित्र मानता हूँ इसलिए किसी प्रकारकी आज्ञा नहीं देना चाहता। अनुनय-विनय करके ही तुमसे काम लेना चाहता हूँ। तुम्हारी पितृ-भक्तिके आधारपर तुमसे कुछ करानेकी मेरी कोई इच्छा नहीं है। इसमें रोषकी बात नहीं है। मैं ऐसा कर्त्तव्य समझकर करता हूँ। आज भी तुम्हें मेरी यही सलाह है कि तुम परीक्षाका मोह छोड़ दो। उसमें उत्तीर्ण हो जाओगे तो मुझे उससे कोई खुशी नहीं होगी। और यदि अनुत्तीर्ण हो गये तो तुम्हें बहुत क्षोभ होगा। किन्तु जो तुम्हें पसन्द हो वही रास्ता चुनना। यदि परीक्षाका लालच छोड़ सको, और यह पत्र मिलने तक यदि संघर्ष चल रहा हो, तो चंचीको लेकर यहाँ आ जाना-- दोनोंके जेल जानेके विचारसे चंची अब और किसी कारणसे यहाँ नहीं आ सकती। यदि लड़ाई जल्दी समाप्त हो गई तो मैं शीघ्र ही वहाँ आ जाऊँगा तब हम लोग मिलेंगे और बातचीत करेंगे।

तुम्हारे डिस्पेप्सिया [मन्दाग्नि ] का एक ही इलाज है--१५ मील रोज पंदल चलना। रुचिके अनुसार भोजनमें कोई चबा कर खाने योग्य चीज लिया करो। आरोग्यपर लिखे गये प्रकरण' यदि तुमने पढ़े हों तो उनमें बताये हुए प्रयोग करनेसे यह बीमारी बिलकुल निःशेष हो जायेगी। तुम्हारी मनःशक्तिका क्षय हुआ है, उसमें कोई आश्चर्यकी बात नहीं है। वहाँका शिक्षण निरर्थक है क्योंकि उसके पीछे कोई चिन्तन

१. पत्रके चौथे भनुच्छेदमें जिन गिरफ्तारियोंका उल्लेख है, वे सितम्बर १६, १९१३ को हुई थीं।

२. श्री गोखलेने हरिलालको दक्षिण आफ्रिका लौटनेसे रोक लिया था और दिसम्बर २६ को गांधीजीको तारसे सूचित कर दिया था कि “बम्बईमें हरिलाल मुझसे मिला । उसने बताया कि आपने उसे दक्षिण भाफ्रिकामें संवर्षमें भाग लेनेके लिए तत्काल बुलाया है । मैंने जिम्मेदारी लेकर उसे भारतमें शिक्षण प्राप्त करते रहनेके लिए रोक लिया है। हस्तक्षेप क्षमा करें।"

३. अभिप्राय उन दिनों इंडियन ओपिनियनमें क्रमश: प्रकाशित होनेवाले आरोग्य विषयक प्रकरणोंसे है।