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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उन्हें दिये हुए वचनका यदि सरकार पालन नहीं करती तो इसे हमारे प्रति विश्वासघात ही माना जायेगा। हम उम्मीद करते है कि इस स्वर्ण अवसरका अधिकांश भारतीय लाभ उठायेंगे; और जो संघर्ष में उतरेंगे उन्हें ईश्वर -- खुदा--आवश्यक बल और श्रद्धा प्रदान करेगा; यह अवश्यम्भावी है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १३-९-१९१३

१२९. मणिलाल गांधीको लिखे पत्रका अंश

[डर्बन]
बुधवार, सितम्बर १७, १९१३

चि० मणिलाल,

'बा आदि सब लोग सोमवारके दिन बड़ी हिम्मतके साथ गये... तमोगुणके सिवा रजोगुण और सतोगुण हैं। तमोगुणकी प्रधानता होनेसे मनुष्य अन्धा, अज्ञानी और आलसी बना रहता है। रजोगुण उसे अविचारी, साहसी और दुनियवी बातों में उत्साहपूर्ण बनाता है। यूरोपके लोगोंमें रजोगुणकी प्रधानता है। हमारी भी अधिकांश प्रवृत्तियाँ रजोगुण प्रधान है। सत्व गुणवाला व्यक्ति शान्त, स्थिर-बुद्धि और विचारवान होता है। वह दुनियाके प्रपंचमें नहीं पड़ता और अपना मन हमेशा ईश्वरकी ओर उन्मुख रखता है। इस सात्विक वृत्तिको [अंग्रेजी में ] ‘सूदफास्टनेस' कहा गया है सो ठीक है। 'सूद-फास्ट' यानी शान्त, 'नेस' प्रत्यय जोड़नसे इस शब्दकी संज्ञा बन गई और अर्थ हो गया शान्ति । वृत्तियाँ शान्त होनपर ही आत्मदर्शन सम्भव होता है और जिस वृत्तिसे आत्मदर्शन सम्भव होता है वह है सात्विकी वृत्ति । परमात्मा अपने त्रिगुणातीत रूपमें तो भलो या बुरी कोई प्रवृत्ति नहीं करता। किन्तु माया चतन्य रूपमें है। परमात्मा तो तीनों गुणोंसे अतीत है किन्तु वह अर्जुनको ज्ञान देनेकी प्रवृत्तिका आचरण करता है। उस समय उसकी इस प्रवृत्तिके मूलमें सात्विक वृत्ति होती है। और चुंकि प्रवृत्तिमात्र उपाधि है इसलिए उसके इस रूपको सत्वगुणकी उपाधिवाला रूप कहा गया है। अपना मन खूब स्थिर रखना।

[गुजरातीसे]
जीवननुं परोढ़

१.२. पुस्तकमें पत्रके ये अंश छोद दिये गये हैं।