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१२५. तार : गृह-सचिवको

[डर्बन]
सितम्बर १०,१९१३

तारके[१] लिए धन्यवाद। मतभेदोंको करनेकी हर कोशिके बावजूद, मुझे लगता है कि इस उत्तरसे संघषका पुनरारम्भ अनिवार्य हो जाता है। बहु-पत्नीक विवाह के सम्बन्ध में संघका ५ जुलाई, १९११ का पत्र और गृह-मंत्रीका उसी महीनेकी १० उत्तर देखें।[२]

[अंग्रेजीसे
इंडियन ओपिनियन, १३-९-१९१३

१२६. पत्र : गृह-सचिवको

११०, फील्ड स्ट्रीट
डर्बन
सितम्बर ११, १९१३

गृह-सचिव

प्रिटोरिया

महोदय,

प्रवासी प्रतिबन्धक अधिनियमके अन्तर्गत बनाये गये विनियमोंके सम्बन्धमें पिछले मासकी १५ तारीखको लिखे गये मेरे पत्रके उत्तरमें आपका उसी मासकी २१ तारीखका पत्र प्राप्त हुआ।

अंजुमनकी ओरसे, सादर निवेदन है कि अंजुमन द्वारा उठाई गई अधिकांश आपत्तियाँ सिद्धान्तोंसे सम्बन्धित हैं, ब्योरेसे नहीं। निश्चय ही समयका सिद्धान्तोंपर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। केवल एक वर्षकी सीमित अवधि तक लागू रहनेवाले शिनाख्तके प्रमाणपत्रका महत्व उन स्थायी प्रमाणपत्रोंकी अपेक्षा बहुत कम होगा जो पुराने नेटाल अधिनियमके अन्तर्गत जारी किये गये हैं और इस बातका महत्व समय बीतनेसे बिलकुल कम नहीं होगा। इसी प्रकार एक प्रान्तसे दूसरे प्रान्तमें जानेपर लगाये गये एक पौंडी शुल्कपर भी समयका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। मेरे अंजुमनकी विनम्र सम्मतिमें उसकी ओरसे उठाई गई आपत्तियोंपर शीघ्र ही अनुकूल विचार किया जाना चाहिए।

१.

२.

  1. देखिए, “पत्र : गृह-सचिवको", पा० टि०१, पृष्ठ १६८ ।
  2. इसके बाद गांधीजीने १० सितम्बरको जो तार दिया, उसके उत्तर में इस बातका उल्लेख करते हुए ई० एम० जोर्जेसने १९ तारीखको उन्हें लिखा कि "मैं ठीकसे समझ नहीं पा रहा हूँ कि आप किस आश्वासनके बारेमें कह रहे हैं। इसलिए यह पूछताछ कर रहा हूँ । इस विषयमें पिछले पत्र-व्यवहारको देखते हुए मुझे लगता है कि आप प्रवासी अधिकारीके १० अगस्त, १९११ के पत्रकी जो व्यापक व्याख्या कर रहे हैं, उसकी न तो कभी कल्पना ही की गई थी और न वह मन्त्री महोदयको स्वीकार होगा।"