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लॉर्ड सभाको बहस


सवालपर भारतकी नब्ज़ पहचानते हैं। ये सभी सज्जन हमारी ओरसे बड़े ओजस्वी ढंगसे बोले और उन्होंने स्वीकार किया कि हमारी मांगें पूर्णतः न्याय्य है। उन्होंने कोई सामान्य' वक्तव्य देकर ही सन्तोष नहीं कर लिया, बल्कि इनमें से हरएकने सवालके ब्यौरोंके विषय में अपने अधिकार और ज्ञानका ऐसा परिचय दिया, जो ऐसे विवादोंमें कम ही देखनेको मिलता है। लॉर्ड एम्टहिलने इस दिशामें कैसा महान् प्रयत्न किया है, कितनी सावधानी और सतर्कता बरती है, इस सबसे तो हम वर्षोंसे परिचित है। लॉर्ड महोदयने हमारे सवालको अपना बना लिया है। किन्तु, लॉर्ड कर्जन और लॉर्ड सिडेनहमका इस विषयपर आश्चर्यजनक अधिकार देखकर बड़ा सन्तोष और आश्वासन मिलता है। उनका इस सवालमें दिलचस्पी लेना हमारे भविष्यके लिए शुभ लक्षण है। और इससे लॉर्ड ऍम्टहिलको भी उस उद्देश्यकी हिमायत करने में बल मिलेगा, जिसे वे न्यायसंगत और साम्राज्यके हितकी दृष्टिसे इतना महत्वपूर्ण समझते हैं कि अनेक कार्योंमें व्यस्त रहते हुए भी वे उसपर निरन्तर व्यक्तिगत रूपसे ध्यान देते रहते हैं।

इस बहससे यह भी मालूम हो गया कि लॉर्ड क्रूके पास कोई कैफियत नहीं थी। उन्होंने जो 'न शक्नोमि" वाला (नान पासमस) रुख अपनाया वह बहुत ही खतरनाक है। हमारी नम्र सम्मतिमें स्वशासित उपनिवेशोंके घरेलू मामलों में साम्राज्य सरकार द्वारा हस्तक्षेप न करनेके सिद्धान्तको हदसे ज्यादा खींचा जा रहा है, और अब यह उस जगह पहुँच गया है कि इससे साम्राज्यका स्थायित्व ही खतरे में है। यदि स्वशासित उपनिवेश इतने स्वतन्त्र है कि वे साम्राज्यको परम्पराओं और हितोंको ठुकरा सकते है, तो उन्हें ब्रिटिश साम्राज्यका अंग कहना एक उपहासकी बात है। यदि वे लेते-ही-लेते रहना चाहते हैं और देना कभी नहीं चाहते तो यह स्थिति अधिक दिनों तक नहीं चल सकती और न यह उस साम्राज्यकी सुरक्षाको दृष्टिसे ही श्रेयस्कर है, जिसका अंग होनेका वे दम भरते हैं। अंग्रेजीके बड़े-बड़े समाचारपत्रोंने बताया है और इसका हवाला हम दे चुके दे है कि अपनी मुसीवतकी घड़ियोंमें संघ-सरकार साम्राज्य-सरकारकी सेनाकी मदद लेनेको तैयार बैठी रहती है। तब क्या उससे यह आशा करना उचित नहीं होगा कि वह एक साधारण-सा न्याय करके उस गम्भीर परिस्थितिसे निकलने में साम्राज्य-सरकारकी तत्परताके साथ मदद करे जो भारतीय साम्राज्यके शासनके सिलसिलेमें उसके सामने उपस्थित है। भारत किसी दिन निश्चय ही इस प्रश्नका कोई सन्तोषजनक उत्तर माँगेगा और उसे प्राप्त करके रहेगा।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ६-९-१९१३

१. अर्थात् , 'मुझसे नहीं बनेगा।'